बरखा दत्त टीवी पत्रकारिता का एक मशहूर चेहरा। करगिल वार जैसी मुश्किल कवरेज इनके खाते में दर्ज है। आइए जानते हैं, इनके कॅरियर और निजी जिंदगी के दिलचस्प वाकयों के बारे में, खुद उनकी जुबानी-
इस बात से मैं बेहद खुश हूं कि लोग मेरे काम को इतना पसंद करते हैं। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं जर्नलिस्ट बनूंगी। मैं तो डॉक्यूमेंटी फिल्ममेकर या वकील बनना चाहती थी। अभी भी वकील बनने का मेरा ख्वाब जिंदा है। मेरी मां प्रभा दत्त भी पत्रकार थीं। उन्होंने जंग तक की कवरेज की थी। इसलिए न्यूज में मेरी शुरू से ही दिलचस्पी थी। मैंने शुरू में रिपोर्टिंग के साथ प्रोडक्शन का काम भी किया था। जामिया मिलिया के साथ-साथ कोलंबिया के पत्रकारिता संस्थान से भी मास्टर्स पूरा किया था। कोलंबिया जाने के समय मैंने पत्रकारिता के कॅरियर से डेढ़ साल की छुट्टी ले ली थी।
पत्थर के पीछे कई रातें
जर्नलिज्म में नौकरी को लेकर काफी असुरक्षा रहती है, पर फिर भी मैंने रिस्क लिया और वहां गई। और देखिए, मेरी वापसी के आठ महीने बाद ही करगिल की लड़ाई शुरू हो गई थी। करगिल वार की कवरेज के दौरान मेरे पास एक ही जींस रह गई थी, मैं 15 दिन तक उसी को पहने रही। करगिल में मेरे किरदार को फिल्म 'लक्ष्यÓ में प्रीति जिंटा ने बखूबी निभाया। लड़ाई का कवरेज करते वक्त डर तो लगता है, पर वहां घटनाक्रम इतनी तेजी से बदलता है कि डर पीछे छूट जाता है। उस वक्त आपको समझ नहीं आता कि आप किस तरह का जोखिम ले रहे हैं, पर बाद में उन दिनों को याद करके हैरान रह जाती हूं कि मैंने इतने ज्यादा रिस्क लिए थे।
मुझे आज भी याद है कि करगिल वार के दौरान हम जिस गाड़ी में थे, उस पर गोलीबारी हो गई और हमने कई रातें एक बड़े पत्थर के पीछे छुपकर गुजारीं। दिल-दिमाग पर बस लड़ाई का कवरेज छाया हुआ था, ना खाने की फिक्र, ना नहाने की। जो हेलीकॉप्टर्स शवों को ले जाते थे, हम उनसे कवरेज के टेप साथ में ले जाने की गुजारिश करते थे। वहां पर मोबाइल की बजाय सैटेलाइट फोन थे। बंकरों में छुपकर मैंने सैटेलाइट फोन से रिपोट्र्स भेजीं।
थोड़ा-सी सनक चाहिए
मेरा बचपन नई दिल्ली और न्यूयार्क में गुजरा। बचपन के कई साल मैंने न्यूयॉर्क में गुजारे थे। मेरे पिताजी एयर इंडिया में काम करते थे और उनके ट्रांसफर के चलते हमें न्यूयार्क जाना पड़ा था। मैंने दुनिया बहुत घूमी है। पर मैं बचपन में शरारती नहीं थी बिल्कुल खामोश रहती थी। उस वक्त भी मैं बहुत किताबें पढ़ती थीं। आज भी खाली समय में किताबें ही पढ़ती हूं। मैं अपनी मां और उनके काम से बहुत प्रभावित थी। पर जब मैं मात्र तेरह साल की थी, तो ब्रेन हैमरेज से उनका देहांत हो गया। मुझमें आज भी न्यूज को लेकर बहुत ज्यादा भूख है। या यूं कहूं कि न्यूज को लेकर थोड़ा-सा पागलपन भी है। एक बार मैंने किसी लेख में लिखा था कि टीवी जर्नलिज्म होने के लिए आपको थोड़ा सनकी भी होना चाहिए और यह बात मुझ पर सटीक बैठती है।
मैं असल जिंदगी में जो स्टाइल अपनाती हूं, वही तरीका मैं कैमरा फेस करते हुए भी इस्तेमाल करती हूं। शुरुआती दौर में एक बार मैंने राहुल द्रविड़ से कह दिया कि मुझे क्रिकेट में दिलचस्पी नहीं है। इसके बाद मुझे कभी इंटरव्यू नहीं मिला। मैं जिंदगी में जैसे बात करती हूं, वैसे ही टीवी पर बात करती हूं। करगिल पर मेरे बेहतरीन काम को देखकर एक बार अमिताभ बच्चन ने मुझे फोन करके बधाई दी।
मेहनती होना चाहिए
मैं सद्दाम हुसैन के जमाने में इराक गई थीं। वहां अमरीकी सैनिकों ने हमें पकड़ लिया और टेप ले लिए। फिर जैसे-तैसे वहां से छूटी। मेरे साथ ऐसे कई वाकए कॅरियर के हर मोड़ पर हुए हैं। जब मैंने सलमान रुश्दी का इंटरव्यू किया, तो मैं बहुत घबराई हुई थी। मुझे इस बात का डर था कि चाहे मैं कुछ भी पूछ लूं, वे इतने चतुर हैं कि अपनी बात को सही साबित कर देंगे। रतन टाटा का इंटरव्यू लेना भी काफी मुश्किल है, वह अंतर्मुखी हैं और बहुत कम बोलते हैं। सोनिया गांधी बहुत ही शर्मीली महिला हैं। मैंने बेनजीर भुट्टो की हत्या के तीन दिन बाद आसिफ अली जरदारी से लरकाना में इंटरव्यू किया। उस वक्त मुझे समझ नहीं आ रहा था कि इंटरव्यू में निजी बातें कितनी पूछूं और राजनीतिक कितनी।
पद्मश्री मिलने पर मैं बहुत अभिभूत महसूस कर रही थी। मैंने कभी नहीं सोचा था कि उम्र के तीसरे दशक में मुझे पद्मश्री जैसा पुरस्कार मिलेगा। मैं आलोचनाओं को भी काफी ईमानदारी से लेती हूं, पर उसमें झूठ शामिल नहीं होना चाहिए। खाली समय में बहुत-सी फिल्में देखती हूं। मुझे मर्डर मिस्ट्री और जासूसी सीरीज देखना बेहद पसंद है। फिल्मों में शशि कपूर मेरे फेवरिट हैं। लोगों को लगता है कि टीवी जर्नलिज्म बड़ा ग्लैमर वाला प्रोफेशन है, पर ऐसा नहीं है। इस पेशे में वही टिक सकता है, जो बहुत मेहनती है। मैं बहुत भावुक हूं। गुस्सा जल्दी आ जाता हूं, तो आंसू भी जल्दी आते हैं।
-आशीष जैन
Mohalla Live
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जाहिलों पर क्या कलम खराब करना!
Posted: 07 Jan 2016 03:37 AM PST
➧ *नदीम एस अख्तर*
मित्रगण कह रहे हैं कि...
8 years ago
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