13 May 2009

यूं मिली कामयाबी की डगर

मुजफ्फरनगर की श्वेता सिंघल ने सिविल सर्विसेज एग्जाम में हासिल की 17वीं रैंक और हिंदी माध्यम के परीक्षार्थियों में दूसरा स्थान।

'जब मुझे पता लगा कि सिविल सर्विसेज एग्जाम में मुझे 17वीं रैंक हासिल हुई है, तो एकबारगी तो यकीन ही नहीं हुआ। लगा मेरी सालों की मेहनत और माता-पिता का आशीर्वाद काम आ ही गया। यह कहना है सिविल सर्विसेज एग्जाम में 17 वीं रैंक हासिल करने वाली उत्तप्रदेश के मुजफ्फरनगर की 27 वर्षीय श्वेता सिंघल का। हिंदी माध्यम के परीक्षार्थियों में उन्हें दूसरा स्थान मिला है। उनकी आंखों में देश के विकास के सपने हैं, तो बातों में कुछ कर गुजरने का आत्मविश्वास। अपनी कामयाबी में उन्होंने ग्रामीण परिवेश को कभी आड़े नहीं आने दिया। हालांकि श्वेता का यह तीसरा प्रयास था, पर उन्होंने पढ़ाई का तनाव कभी अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। वे कहती हैं, 'लड़की होने के नाते मेरे ऊपर ज्यादा जिम्मेदारियां थीं। मुझे खुद को साबित करना था।

विषय को समझा गहराई से
मुजफ्फरनगर के श्यामली कस्बे में पैदा हुई श्वेता के पिता अरुण सिंघल मेडिकल स्टोर संभालते हैं। मां उषा गृहिणी हैं और भाई नितिन आईएएस की तैयारी कर रहा है। बड़ी बहन रश्मि की शादी हो चुकी है। श्वेता ने शुरुआती पढ़ाई श्यामली में ही की। इसके बाद वे दिल्ली यूनिवर्सिटी से स्नातक करने के लिए दिल्ली आ गईं। लेडी श्रीराम कॉलेज से हिंदी ऑनर्स से बीए करने के बाद उन्होंने हिंदू कॉलेज से एमए किया। हिंदी विषय में ही उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से ही एमफिल भी किया। सिर्विल सर्विसेज के बारे में श्वेता पहले गंभीर नहीं थी। पर एमफिल करने के बाद उन्होंने एग्जाम के लिए कमर कस ली। शुरू के दो प्रयासों में उन्हें इस परीक्षा को करीब से समझने का मौका मिला। उन्हें यह बात समझ में आई कि जब तक विषय की गहराई में नहीं जाएंगे, सफलता मिलना मुश्किल है। पढ़ाई के दौरान श्वेता कॉलेज हॉस्टल में ही रहती थीं। उसके बाद वे सिविल सर्विसेज की तैयारी के लिए अपने भाई के साथ किराए के फ्लैट में रहने लगी।
आत्मविश्वास और मेहनत
सिलसिलेवार तरीके से पढ़ाई करते हुए उन्होंने अपने लक्ष्य पर निगाह जमाए रखी। प्री एग्जाम में भूगोल विषय लेकर मुख्य परीक्षा भूगोल और हिंदी साहित्य से पास की। साक्षात्कार में सफलता के लिए उन्होंने खान स्टडी गु्रप में ट्रेनिंग ली। इस बारे में वे कहती हैं, ' मेरे सर ए. आर. खान ने व्यक्तिगत रूप से मुझे काफी मदद की। उन्होंने मुझे पर्सनलिटी डवलपमेंट के गुर सिखाए। इसी की बदौलत मैं यह सफलता पा सकी। अपने ग्रामीण परिवेश के बारे में वे कहती हैं, 'ग्रामीण विद्यार्थियों को शुरू में सब कुछ अटपटा लगता है। न तो सही गाइडेंस होती है और न ही उचित संसाधन। ऐसे में आत्मविश्वास और मेहनत ही काम आते हैं। अपने साक्षात्कार के बारे में वे बताती हैं, 'इंटरव्यू के दौरान मुझसे पूछा गया कि इंटरव्यू देने आते वक्त आप क्या सोचकर आईं? साथ ही धर्म, इतिहास, बाल विकास, महिला सशक्तीकरण, अर्थव्यवस्था पर सवाल पूछे गए। हिंदी माध्यम को श्वेता अपनी सबसे बड़ी ताकत बताती हैं। वे कहती हैं, 'हिंदी भाषा मेरा आत्मविश्वास है। हिंदी मेरे लिए कभी बाधा नहीं बनी, बल्कि हिंदी की वजह से ही मेरा चयन हो पाया। अपने भविष्य के बारे में उनकी सोच साफ है। बकौल श्वेता, 'मैं भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में जाकर सबसे पहले फील्ड की बारीकियां सीखूंगी। लोगों की समस्याओं से रूबरू होऊंगी। इसके बाद मैं सरकारी अफसर और जनता के बीच बनी हुई संवादहीनता खत्म करूंगी। मेरा मानना है कि जब तक लोगों के मन से सरकारी सिस्टम का डर नहीं निकलेगा, तब तक देश का विकास अधूरा रहेगा।
-आशीष जैन

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