नए साल पर जीवन में कुछ खास बातों को साकार करना अच्छा रहेगा, तो क्यों न मशहूर साहित्यकारों के लेखन पर एक नजर डाली जाए-
उल्लास
स्वागत! जीवन के नवल वर्ष
आओ, नूतन-निर्माण लिए
इस महा जागरण के युग में
जाग्रत जीवन अभिमान लिए
दीनों दुखियों का त्राण लिए
मानवता का कल्याण लिए।
सोहनलाल द्विवेदी (नववर्ष)
स्वप्न
जा तेरे स्वप्न बड़े हों।
भावना की गोद से उतर कर
जल्द पृथ्वी पर चलना सीखें।
चांद तारों सी अप्राप्य ऊंचाइयों के लिए
रूठना मचलना सीखें।
दुष्यंत कुमार (एक आशीर्वाद)
विश्वास
मैं बढ़ा ही जा रहा हूं,
पर तुम्हें भूला नहीं हूं ।
चल रहा हूं, क्योंकि चलने से थकावट दूर होती,
जल रहा हूं, क्योंकि जलने से तमिस्त्रा चूर होती,
गल रहा हूं, क्योंकि हल्का बोझ हो जाता हृदय का,
ढल रहा हूं, क्योंकि ढलकर साथ पा जाता समय का ।
शिवमंगल सिंह सुमन (मैं बढ़ा ही जा रहा हूं)
संघर्ष
तप रे मधुर-मधुर मन !
विश्व वेदना में तप प्रतिपल,
जग-जीवन की ज्वाला में गल,
बन अकलुष, उज्ज्वल औ' कोमल
तप रे विधुर-विधुर मन !
सुमित्रानंदन पंत (गुंजन(कविता संग्रह))
निश्चय
प्रातः होगा, होगा निश्चय,
अंधेरे को छंटना ही है,
तुम्हारी स्वर्णिम वाणी को,
दूर नभ से फटना ही है!
रवींद्रनाथ टैगोर (गीतांजलि)
शुभकामना
नए साल की शुभकामनाएं !
खेतों की मेड़ों पर धूल भरे पांव को
कुहरे में लिपटे उस छोटे से गांव को
नए साल की शुभकामनाएं...
इस पकती रोटी को बच्चों के शोर को
चौके की गुनगुन को चूल्हे की भोर को
नए साल की शुभकामनाएं !
सर्वेश्वरदयाल सक्सेना (नए साल की शुभकामनाएं ! )
हौसला
वह प्रदीप जो दीख रहा है झिलमिल दूर नहीं है
थक कर बैठ गए क्या भाई मंजिल दूर नहीं है
चिंगारी बन गई लहू की बूंद गिरी जो पग से
चमक रहे पीछे मुड़ देखो चरण-चिह्न जगमग से
बाकी होश तभी तक, जब तक जलता तूर नहीं है
थक कर बैठ गए क्या भाई मंजिल दूर नहीं है
रामधारी सिंह दिनकर (आशा का दीपक)
आशा
आशा
शैशव के सुंदर प्रभात का
मैंने नव विकास देखा...
जग-झंझा-झकोर में
आशा-लतिका का विलास देखा।
आकांक्षा, उत्साह, प्रेम का
क्रम-क्रम से प्रकाश देखा॥
सुभद्राकुमारी चौहान (उल्लास)
प्रस्तुति- आशीष जैन
No comments:
Post a Comment