मिलते हैं देश की अकेली महिला सुपर बाइक रेसर अलीशा अब्दुल्लाह से।
दौ सौ किलो वजनी 600 सीसी की होंडा सीबीआर बाइक। उसे बच्चों के किसी खिलौने की तरह दौड़ाने के लिए तैयार है वह। पलक झपकते ही 210 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार छूना उसका शगल है। उसका कहना है,'मैं रफ्तार हूं। सबसे तेज। बिजली-सी कौंधने वाली रफ्तार। मेरी जिंदगी बाइक के लिए है और मैं मरूंगी भी बाइकिंग के लिए। बाइकिंग मेरव् खून में है।' यह है चेन्नई की 19 वर्षीय अलीशा अब्दुल्लाह। बाइकिंग के लिए दीवानगी की झलक उसके ईमेल आईडी 'लिवफॉरस्पीड' से मिलती है।
मजा है लड़कों को हराने में
देश की सबसे कम उम्र की महिला सुपर बाइक रव्सर अलीशा अब्दुल्लाह ने आठ साल की उम्र से ही बाइक चलाना शुरू कर दिया था। वह बताती है, 'पुरुषों के साथ मुकाबला वाकई रोमांचक रहता है क्योंकि 110 सीसी और 600 सीसी बाइकिंग में कोई भी महिला प्रतिभागी नहीं होती। मुझे लड़कों को हराने में बहुत मजा आता है। मुझे तब ज्यादा खुशी मिलती है, जब लड़के गर्दन झुकाए खड़े रहते हैं। उनमें से कुछ तो रोने तक लगते हैं, पर जीत मुझे मिलती है। जब लोग मुझसे पूछते हैं कि तुम्हारा सबसे बड़ा सपना क्या है, तो मेरा जवाब रहता है, 'मुझे दुनिया का सबसे तेज बाइकर बनना है।'
शौक मरने नहीं दूंगा
उसके पिता आर. ए. अब्दुल्ला भी जाने-माने बाइकर रह चुके हैं और सात बार राष्ट्रीय चैंपियनशिप जीत चुके हैं। वे ही अलीशा को बाइकिंग की टे्रनिंग देते हैं। बकौल अलीशा, 'जब कभी रव्सिंग करते हुए मैं घायल हो जाती हूं तो पापा कहते हैं कि तुम एक रव्सर हो, तुम हार नहीं सकती। इससे मुझे गजब का हौसला मिलता है।' उसके पिता बताते हैं, 'मुझे बचपन में ही उसकी क्षमताओं का पता लग गया था। मैं उसे खूब सिखलाता और प्रोत्साहित करता, पर उसके लायक कार और बाइक्स का इतंजाम नहीं कर पाता था। फिर भी मैंने बेटी के शौक को मरने नहीं दिया और कार रव्सिंग की बजाय बाइकिंग में किस्मत आजमाने की सलाह दी और तब अलीशा हर रविवार रव्सटै्रक पर नजर आने लगी। आज उसकी बाइकिंग वाकई शानदार हो गई है। रेसिंग के दौरान हमेशा उसका नजरिया करो या मरो का रहता है। हार उसे कतई मंजूर नहीं है। पर जब कभी उसकी रेस में थोड़ी चूक रह जाती है, तो मैं उसे धीरज का सबक देता हूं। मैं हमेशा उससे कहता हूं कि अगर तुम गति पर नियंत्रण रखना सीख लोगी, तो रेस में आधी जंग खुद-ब-खुद जीत जाओगी।'
बस जोश चाहिए
बाइक को अपनी जिंदगी बताते हुए अलीशा कहती है, 'बाइक, हैलमेट और जंपसूट मिलने पर लगता है कि मैं पूरी हो गई हूं। इनके बिना लगता है कि मैं अधूरी-सी हूं।' जब उससे पूछा जाता है कि सुपर बाइकिंग जैसा खतरनाक काम तो खास तौर पर लड़के ही कर सकते हैं, तो वे तपाक से कहती हैं, 'क्या सारे जोखिम वाले काम करने का ठेका लड़कों ने ही ले रखा है? जिसमें जोश है, वह सब कुछ कर सकता है। मैं कभी लड़कियों के साथ रेस नहीं लगाती बल्कि सबसे तेज बाइक चलाने वाले लड़कों को हराने के बारे में सोचती हूं। मैं ऑटोक्रॉस रेसेज, गो कार्टिंग और फामूर्ला रेसेज तक में प्रतिस्पर्धा कर चुकी हूं।' पढ़ाई में भी अलीशा कभी कमजोर नहीं रही। अभी वह समाजशास्त्र में स्नातक की पढ़ाई कर रही है। आगे उसकी एमबीए करने की इच्छा है।
दुआओं का असर
अलीशा को टेनिस खेलने का भी बहुत शौक है। उसके पिता मुस्लिम हैं और मां ईसाई। वह कहती है कि पिताजी से अच्छी बाइक चलाते आज तक मैंने किसी को नहीं देखा। मुझे अभी काफी कुछ सीखना है तभी मैं रव्सिंग की बेताज बादशाह बन पाऊंगी। उसने 2003 में एमआरएफ नेशनल गोकार्टिंग चैंपियनशिप जीती। उसके बाद वह फार्मूला वन कार रव्सिंग की तरफ मुड़ गई और 2004 में जेके टायर नेशनल चैंपियनशिप में पांचवा स्थान हासिल किया। उसका कहना है , 'अब मेरा मकसद जेके टायर नेशनल रोड रेसिंग चैंपियनशिप जीतना है। फिर मैं अंतरराष्ट्रीय चैंपियनशिप में हिस्सा लूंगी।' अभी हाल ही उसे यंग अचीवर्स अवार्ड से भी सम्मानित किया गया है। बाइकिंग के उसके जुनून के चलते एक नामी कंपनी ने उसे अपने उत्पाद का ब्रांड एंबेसेडर भी बनाया है।
- प्रस्तुतिः आशीष जैन
रफ्तार तो तुम्हारी भी खूब है दोस्त. इतने कम समय में अपने काम-काज का सारा लेखा-जोखा ब्लॉग में डाल दिया..
ReplyDeleteरफ्तार तो तुम्हारी भी खूब है दोस्त. इतने कम समय में अपने काम-काज का सारा लेखा-जोखा ब्लॉग में डाल दिया..
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