11 September 2008

वो जब याद आए, बहुत याद आए



जैसे वृक्ष के साए में नन्हे पौधे बेफिक्री से झूमते हैं और स्नेह की हवा पाकर बढ़ते जाते हैं। इसी तरह जिंदगी की तपती-तीखी धूप में भी हमें याद आती है पिता के प्यार की ठंडी फुहार। बचपन में पिता के साथ गुजारे पलों को हर कोई बार-बार याद करना चाहता है। पेश है ऐसे ही कुछ सेलिब्रिटीज की बचपन में पिताजी के साथ जुड़ी रोचक यादें-

शबाना आजमी-कैफी आजमी
बचपन में मेरे एक दोस्त ने बताया कि उसने मेरे अब्बा का नाम अखबार में पढ़ा था। चालीस बच्चों वाली क्लास में सिर्फ मेरे अब्बा का नाम अखबार में आया था और इस घटना से मैंने मान लिया कि अब्बा कुछ अलग तरह के इंसान हैं। अब मुझे उनका कुर्ता-पाजामा पहनना बुरा नहीं लगता था। यहां तक कि मैंने वो काली गुड़िया भी बाहर निकाली, जो उन्होंने बचपन में मुझे दी थी। तब मैं चाहती थी कि वो मुझे नीली आंखों वाली सुनहरे बालों की गुड़िया खरीदकर देते, पर अब्बा ने मुझे प्यार से समझाया कि काला रंग भी खूबसूरत है और मुझे अपनी गुड़िया पर नाज करना चाहिए। तब मैं सात साल की थी और यह बात मेरी समझ में नहीं आई, पर मैंने चुपचाप वह गुड़िया ले ली और छुपा दी। तीन साल बाद मैंने उसे बाहर निकाल लिया, क्योंकि वो ही इस बात का पहला प्रमाण थी कि मैं अलग तरह के पिता की अलग तरह की बेटी हूं।जब मैं बड़ी हुई, तो अब्बा ने मेरी जिंदगी के हर फैसले में मेरा साथ दिया और जरूवरत लगी, तो मार्गदर्शन भी किया। जब मैं साम्प्रदायिक सद्भाव के लिए दिल्ली से मेरठ तक एक पदयात्रा में शामिल होने जा रही थी, तो मैं थोड़ा नर्वस थी। मैं अब्बा के कमरे में गई, तो उन्होंने मुझे खींचकर अपने सामने बैठाया और कहा, 'मेरी बहादुर बेटी भला क्यों डर रही है। जाओ तुम्हें कुछ नहीं होगा। यह सुनकर मेरा सारा डर निकल गया था।

अमिताभ बच्चन-हरिवंशराय बच्चन
आज बॉलीवुड में अमिताभ बच्चन जिस मुकाम पर हैं, वहां उन्हें थमकर जरा सा सुस्ताने की फुर्सत नहीं है। कभी न थकने का यह माद्दा अमिताभ को अपने पिता हरिवंशराय से मिला। बकौल अमिताभ 'बाबूजी को कैरम खेलना, क्रिकेट खेलना वगैरहा पसंद नहीं था। वे पढ़ाई पर ज्यादा जोर दिया करते थे। पर वे क्रिकेट प्रेम को बखूबी जानते थे। उन दिनों वे लंदन में थे और बंकिंघम पैलेस में एक कार्यक्रम में निमंत्रित किए थे। वहां भारत की क्रिकेट टीम भी गई हुई थी। उन्होंने तुरंत एक कागज वीनू मांकड़ को दिया और कहा कि कृपा करके पूरी टीम से ऑटोग्राफ ले दें। वीनू अचंभित कि इतना बड़ा कवि ऑटोग्राफ मांग रहा है, तो उन्होंने बताया कि मेरा बेटा बहुत खुश होगा और सचमुच वह ऑटोग्राफ वाला कागज जब बाबूजी ने मुझे पत्र में भेजा और मैंने दोस्तों को दिखाया, तो पूरे स्कूल में अचानक मैं बहुत मशहूर हो गया था।मेरे फिल्मों में आने के बाद बाबूजी ने मेरी सभी फिल्में देखी। अपने मित्रों में फिल्म का प्रचार भी करते थे। फलां फिल्म जरू र देखने जाना, अमित ने अच्छा काम किया है।'

लिएंडर पेस-वीस पेस
बचपन में मैं सॉकर खेला करता था। हमारी टीम का नाम था- कोला कोला। एक बार हमने गोल्ड स्पॉट टीम से फाइनल खेला था। मैच निर्णायक मोड़ पर था। ऐसे में मुझे पेनल्टी किक लगाने का मौका मिला, पर मैं चूक गया। हम मैच हार गए। मुझे लगा सब खत्म हो गया। सभी मुझे ही हार का जिम्मेदार मान रहे थे। ऐसे समय में मेरे पापा मेरे पास आए, मुझे उठाया और कंधे पर बिठाया। फिर पीठ पर झुलाते हुए सॉकर रू म तक ले गए। वे कहते रहे, 'सुनो, तुम सबसे अच्छे थे, तुम हो सकते हो और यही तुम्हें होना है। कभी-कभी चीजें आपके हाथ में नहीं होतीं और कभी उन्हें वैसा ही छोड़ देना चाहिए, जैसा कि वे असल में हैं।'

नितिन राय-रघु राय
जब मैं छोटा था, मुझे फोटोग्राफी की जगह संगीत ज्यादा आकर्षित करता था। मैं उन दिनों संगीतकार बनने का सपना देखता था। पर मेरे पिता के कलात्मक फोटोग्राफ मेरे अवचेतन मन को प्रभावित करते रहे। धीरे-धीरे उनका कैमरा बैग टांगकर मैं उनके फोटो शूट में उनका साथ देने लगा। डार्क रूम में भी उनके इर्द-गिर्द ही घूमता रहता और मेरे अंदर चित्रों के प्रति कलात्मक समझ पैदा होती गई। मम्मी पत्रकार थी, उनकी स्टोरीज के लिए मैं फोटोग्राफ उपलब्ध कराने लगा। हाई स्कूल में 'टारगेट' मैग्जीन के लिए फोटोग्राफ खींचने लगा। पिताजी अक्सर कहते, 'पहले काम की पूरी बारीकियां सीखो, फिर उसमें हाथ आजमाओ।' आज मुझे उनकी वे बातें याद आती हैं।

प्रिया दत्त-सुनील दत्त
मैं सिर्फ 13 साल की थी, तभी मेरी मां का निधन हो गया। उस वक्त पापा ही हमारे लिए मां बन गए थे। हमारे स्कूलों में जाना, नाटकों में जाना... वे सब कुछ करते थे। इतने बिजी शेड्यूल में भी वे हमारे लिए समय निकालते थे। सन 1987 में पिताजी दंगों से झुलसे भारत देश में शांति के उद्देश्य से मुंबई से अमृतसर पदयात्रा पर निकले। मैंने कहा, 'पापा, मैं भी आपके साथ आना चाहती हूं।' पापा ने मुझे इसी बात के साथ इजाजत दी कि मैं अगले साल कॉलेज रिपीट करूं। मैंने इस यात्रा में पापा से जो मानवीय मूल्य ग्रहण किए, वे आज भी काम आ रहे हैं।

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