07 July 2009

महिलाओं ने हिला दिया

आज हमारी घरवाली बड़ी खुश है। खूब प्यार से बात कर रही है, खाना भी बहुत स्वादिष्ट बनाया है। आज तो ऑफिस से लेट आने पर ताने भी नहीं मारे। क्या बात है, ये सूरज पश्चिम से कैसे उग रहा है। जरूर हो ना हो, दाल में कुछ काला है। रोज तो अपने दुख-दर्द का पिटारा लेकर बैठ जाती थी, कहती थी कि तुम मर्दों ने हमारी जिंदगी तबाह कर रखी है। तुमने हमें दबाकर रखा हुआ है। हमें आगे बढऩा चाहती हैं। और आज कह रही है कि तुम बहुत अच्छे हो, मेरा हर कहा मानते आए हो। मुझे तुम्हारा साथ बहुत भाता है। ये सुनकर मैं वैसे ही उलझन में था, इतने में ही उसने एक सवाल भी दाग दिया कि आगे भी मेरा साथ दोगे ना। मैं सोच में पड़ गया कि कैसे साथ देने की बात कर रही है ये। जरूर कोई बड़ा फंदा लाई है, ये मुझे फंसाने के लिए। मैं सर्तक हो गया। सोचने लगा कि इन दिनों में कुछ खास तो नहीं हुआ।

तभी हमें याद आया कि 100 दिन की मियाद में सरकार महिलाओं को देश की सबसे बड़ी पंचायत में आरक्षण देने जा रही है। जरूर इसे किसी ने बता दिया हो। अब तो ये जरूर चुनाव लडऩे की प्लानिंग बना रही होगी। दरअसल जब भी हमारी बीवी खुश होती है, मायावती और ममता बनर्जी के गुणगान करने लगती है। बोलती है, काश! मुझे भी मौका मिलता चुनाव लडऩे का। तुम जैसे पतियों की तो अकल ठिकाने पर लगा देती। हमें तो शुरू से ही पता है कि स्त्री शक्ति का कोई सानी नहीं है। अगर स्त्री जाग गई, तो सबको सुला देगी। आज जब बिना आरक्षण के ही महिलाओं ने अपना डंका चहुंओर मचा रखा है, तो फिर तो पुरुषों के बोलती ही बंद हो जाएगी।
मेरी पत्नी को तो मीरा कुमार की आवाज में भी कोयल की बोली नजर आती है, कहती है, कितना मीठा बोलती है। अब मीठा बोल-बोलकर संसद में सबको चुप कराएगी। हैडमास्टरनी बन गई है, सब नेताओं की। देखा ना बस एक पोस्ट बची थी, जिस पर महिला नहीं थी, अब तो वो भी पूरी हो गई। अपनी प्रतिभा ताई, सोनिया मैडम और इंदिरा गांधी की तरह ये भी अपना परचम लहराएगी। वैसे मेरा मानना है कि यूं अगर महिलाओं को आरक्षण नहीं भी मिलेगा, तो जल्द ही वो दिन भी आएगा, जब पूरी संसद में महिलाएं नजर आएंगी और जो बचे-कुचे पुरुष होंगे, वे सब मौन में चले जाएंगे। उन्हें ये डर हमेशा सताएगा कि कहीं ये औरतें अपने बैगों में बेलन छुपाकर ना लाई हों। अगर ज्यादा भड़भड़ाहट की, तो तपाक से बेलन निकालकर मारेंगी।
अब देख लीजिए शुरुआत तो हो चुकी है, उनसठ महिलाओं ने बाजी मार ली ना इस बार के चुनावों में।
आरक्षण आएगा, तो ऐसी महिला क्रांति लाएगा, जिसकी उम्मीद तो शायद महिला सशक्तिकरण करवाने वाली संस्थाओं ने भी नहीं की होगी। पुरुषों की बजाय अब महिलाएं चाय की थडिय़ों का मंच हथिया लेंगी। सारी औरतें मिलकर वहीं कंट्री के फ्यूचर की प्लानिंग करेंगी। पनवाड़ी की दुकान पर महिला पान बेचती नजर आएंगी, रैलियों में महिलाओं की भीड़ उमड़ेगी, बसों में पुरुष आरक्षित सीटें नजर आएंगी, महिला आयोग के दफ्तर पर ताला लग जाएगा और सारे पुरुष मिलकर पुरुष आयोग की मांग करने लगेंगे। दहेज पीडि़त महिलाएं नदारद हो जाएंगी और महिलाओं द्वारा उत्पीडि़त पुरुषों की संख्या में भारी इजाफा देखने को मिलेगा। राष्ट्रपिता, राष्ट्रपति जैसे शब्दों की तरह ही संविधान में राष्ट्रमाता, राष्ट्रपत्नी जैसे शब्दों को शामिल करने की पुरजोर वकालत की जाएगी। आतंकवादियों की नई फौज में महिला आतंकवादियों का वर्चस्व बढऩे लगेगा... इत्यादि इत्यादि। यूं तो मेरे पास भावी परिवर्तनों की बहुत लंबी लिस्ट है, पर उन सब बातों का यहां उल्लेख करना ठीक नहीं रहेगा। वरना लाखों पुरुष शरद यादव की तरह ही आत्महत्या करने की योजना बना लेंगे। मैं नहीं चाहता कि मेरी जात मतलब पुरुष बिरादरी घबराहट में कुछ गलत उठा ले। भाईयो, अभी डरने की नहीं धैर्य करने की जरूरत है। हम आपको यकीन दिलाते हैं कि आप पर ज्यादा आंच नहीं आएगी। हम अपनी माताओं-बहनों-बीवियों से फरियाद करेंगे कि वे अपने बाप-भाई-पति का पूरा ध्यान रखेंगी। हम उनके साथ समझौता करने को तैयार हैं। वो हमें समय पर चारा मतलब भोजन मुहैया करवाएंगी बदले में हम घर की सफाई कर दिया करेंगे। वो हमसे थोड़ा प्यार से बात कर लिया करेंगी और हम बदले में बच्चों की पोटी साफ कर दिया करेंगे।
हम इतना सोच कर पसीने-पसीने हो गए और मन किया कि अपनी पत्नी के पांव छू लें और उसे अभी से पटा लें। पर क्या देखते हैं कि पत्नी कलैंडर लेकर सामने खड़ी थी। बोले बस कुछ ही दिन तो बचे हैं। हमने सोचा कि इसने 100 दिनों में से उल्टी गिनती शुरू कर दिया दिखता है। पर वो बोली कि मुझे मायका जाना है, बच्चों की छुट्टियां खत्म होने में कुछ दिन ही बचे हैं। आप घर का ध्यान रखना, मैं जल्द ही आ जाऊंगी। इतना कहकर वो मायके जाने की तैयारी करने लगी और हम सकुचाए से अपने भविष्य के संकट के बारे में दुबारा विचारमग्न हो गए।
-आशीष जैन

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