09 March 2009

नारी कभी ना हारी

नारी के ना जाने कितने रंग है? कभी एक रंग को पकड़ता हूं, तो लगता है कि अरे यह तो छूट ही गया। दया, प्रेम, करुणा जैसे गुणों की बात करने लगता हूं, तो जीवटता, सहनशीलता, मर्यादा जैसे रंगों पर बात अधूरी रह जाती है। आज मन कर रहा है कि चलो कोशिश करूं और देखूं कि महिला के जिंदगी के कितने रंगों में समाई है? महिला दिवस आ रहा है। लोग चारों ओर महिलाओं की उपलब्धियों की बात करेंगे। चारों दिशाओं में गूंजते नारों से लगेगा कि महिला ही आज सर्वोपरि है। सरकार भी तो अपने गाल बचाएगी। जननी सुरक्षा लागू कर दी। फिर भी दूर-दराज में आज भी प्रसव मां के लिए सुरक्षित नहीं है। अरे सरकार खुद कहती है कि पिछले 20 सालों में करीब 1 करोड़ बच्चियों को गर्भ में ही मार डाला गया। अब अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की भी तो सुन लो। कहता है कि दुनियाभर में 75 फीसदी महिलाएं कोई ना कोई काम करती है। हमने पूछा फिर तो महिलाओं के पास बहुत-सी संपत्ति होनी चाहिए। पर जवाब आता है- जी नहीं। इन काम करने वाली वामाओं में से सिर्फ 0.01 फीसदी महिलाओं के पास संपत्ति का मालिकाना हक है। वाह रे दुनिया बनाने वाले। काम कोई करे और मजा कोई ले। बचपन में नानी, मामी, फूफी, बहन, पत्नी और मां जैसे रिश्तों में बंधी नारी आज तो हमारी अफसर बन गई है। प्रतिभाताई को भूल गए क्या। राष्ट्रपति हैं। देश में कोई बड़ा फैसला उनके हस्ताक्षर के बिना कोई करके तो दिखाए। कभी जमाने भर से दबी-कुचली नारी अब आजाद हो गई है। विद्या नाम चाहे कहीं सुनाई ना दे, पर माया की खनक चहुंओर है। अजी गौर कीजिएगा, मैं तो दानवी मायावती की बात कर रहा हूं। खुद जिंदा है, पर लोगों की याददाश्ती के लिए खुद की आदमकद मूर्ति बनाकर खड़ी कर दी है। क्या पता कल वो ना रहे, मूर्ति के बहाने उसकी याद तो ताजा होती रहेगी। और तो और आज तो फिजा का जमाना है। जो दर-दर अपने चंदू को खोज रही है। मीडिया है ना उसका साथ देने के लिए। ऐसे में चंद्रयान के लिए काम करने वाली खुशबू मिर्जा को कौन पूछे। होगी कोई। हमें तो मसाला चाहिए। अपन पूछते हैं फिर आप सानिया के पीछे क्यों पड़े रहते हो। वो भी तो देश का नाम ही ऊंचा कर रही है। अजी वो कहते हैं हमें कौनसा टेनिस से मतलब है। हमें तो उसके स्कर्ट से काम है। सतयुग में हम कहते थे कि देखो नारी हो, तो मैत्रयी या गार्गी जैसी। गार्गी जैसी नारी जिसने याज्ञक्ल्वय जैसे विद्वान को शास्त्रार्थ में मात दी। आज चाहे गार्गी कहीं नजर न आए, पर हर गली मोहल्ले में उसकी बहनें अपने-अपने पतियों से यूं वाकयुद्ध लड़ती रहेंगी कि मानो लड़ाई जीतने पर उन्हें ही परमयोद्धा का खिताब मिलने जा रहा हो। भई त्रेता युग को भूल गए क्या। जब प्रभु राम हुए। तब की नारियां क्या कम थीं। सीता, केकैयी, अहल्या और शबरी। हर किसी में कुछ खास बातें। आज की महिला को तो सीता शब्द ही गाली लगता है। केकैयी ना होती, तो हिंदुस्तानी फिल्मों की ललिता पंवार को कौन याद रखता। शबरी जैसी तिरस्कृत नारी के झूठे बेर खाकर रामजी कितना खुश हुए, ये किसी को बताने की जरूरत नहीं है। हां, अहल्या जैसी पतिव्रता पत्नी कहीं ना हो, जो इंद्र को ऋषि गौतम मान बैठी, तो बेचारी को पति ने ही श्राप दे डाला और पत्थर की बनकर रह गई। वो तो शुक्र है राम जैसे दया के सागर ने उन्हें छू लिया और वापस नारी बना डाला। चलिए छोड़िए जी, आप तो द्वापर युग पर नजर डालिए। क्या टाइम था भाईजी। यशोदा का लाल किशन कन्हैया। गोपियों के बीच घिरा हुआ। राधा के संग रास रचाकर सारी दुनिया को प्यार का नया पाठ सिखला गए। यशोदा भी कितना स्नेह उड़लेती थी अपने गोपी बजैया पर। मैं तो इतना ही जानता हूं कि जैसे-जैसे समय बदलता है, स्त्री भी अपनी महानता दिखाने से नहीं चूकती। अब कलियुग को ही देख लीजिए। पन्नाधाय, क्या महिला थी। स्वामिभक्ति और त्याग की उनसे बड़ी मिसाल शायद ही कोई और हो। उदयसिंह की खातिर अपने पुत्र को बनवारी की तलवार के आगे लिटा दिया। कैसा दृश्य रह होगा, जब अपनी आंखों के सामने अपने बेटे को तलवार से कटते देखा होगा। अब मैं ज्यादा तो नहीं बोलूंगा पर इतना कहूंगा कि हमारे बेटे-बेटियों को तो मल्लिका और करीना ही भाती हैं। इनके गुणों से अवगत कराते हुए अक्सर हमसे कहते रहते हैं कि बापू आज तो करीना के जीरो फिगर वाली ड्रेस पहन ही लेने दो। हम भी क्या करें, आखिर नौजवान पीढ़ी है। खुशी-खुशी हां कर दी, तो ठीक। वरना विद्रोह भी कर सकती है। बहू आजादी के नाम पर अपना पल्लू सिर से कब का पीछे ले जा चुकी है और बेटी न जाने कब स्कूटी के सहारे अपने दोस्तों के साथ पार्टी करने में मशगूल है। देखो जी, हम तो ठहरे जी सज्जन जीव। हमें तो सब भला ही दिखता है। हम तो यही मान लेते हैं कि यही है असल महिला सशक्तिकरण। अजी आप भी टेंशन मत लो। आज की नारी खुद समझदार है। वो खुद को संभाल लेगी। अगर मैंने या आपने ज्यादा भाषण झाड़ने की हिम्मत की, तो खैर नहीं होगी।
-आशीष जैन

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