30 January 2009

जिंदगी कभी रिटायर नहीं होती



रिटायर्ड लोगों को नौकरी मुहैया कराने की मुहिम में जुटे बुजुर्ग पानगड़िया दंपती।


'छह महीने पहले की ही तो बात है, जब हमें बुजुर्गों को नौकरी दिलाने के लिए वेबसाइट बनाने का आइडिया आया। शुरू में लगा कि कैसे यह सब होगा। पर हमने पहल की और देखिए हम सफल रहे। आज हम लगभग 750 बुजुर्गों को नई नौकरी दिला चुके हैं।' यह पंक्तियां पढ़कर आपको लगकर रहा होगा कि हम उत्साह से लबरेज किन्हीं युवाओं की बात कर रहे हैं। जी नहीं, यह जोश तो पानगड़िया दंपती की बातों में नजर आता है। जयपुर निवासी 61 साल के रवि पानगड़िया अपनी 59 साल की पत्नी आशा के साथ मिलकर रिटायर्ड हो चुके लोगों को रोजगार दिलाने की मुहिम में लगे हुए हैं। वे http://www.jobsretired.com/ नाम की एक वेबसाइट का खुद संचालन कर रहे हैं और इसकी मदद से बुजुर्गों की क्षमता के मुताबिक उन्हें मनमाफिक काम मुहैया करा रहे हैं। नौकरी के दौरान ही रवि और आशा को पता लग चुका था कि आने वाला समय कंप्यूटर और इंटरनेट का होगा। धीरे-धीरे उन्होंने इंटरनेट पर समय बिताना शुरू कर दिया और इस पर महारत हासिल कर ली।


स्थायी संपर्क इंटरनेट


1970 में इंजीनियरिंग पास कर चुके रवि बताते हैं, 'साल 2006 में भिलाई में एच ई जी लिमिटेड कंपनी से सीनियर वाइस प्रेसीडेंट के पद से रिटायर होने के बाद जयपुर आ गया। यहां आकर मैंने मैनेजमेंट कंसलटेंसी शुरू करने की कोशिशें की। पर इस काम में मुझे लगभग दो महीने लग गए और काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। उस वक्त मुझे लगा कि अगर मुझ जैसे रिटायर्ड आदमी को इतनी परेशानी आई हैं, तो मेरे जैसे और बुजुर्गों को भी काम-धंधे ढूढ़ने में परेशानी आती होगी। तब मैंने 1 जनवरी, 2008 को स्थानीय अखबार में बुजुर्ग लोगों से नौकरी के लिए बायोडाटा मांगे और साथ ही कंपनियों से भी आग्रह किया कि उन्हें किस तरह के लो लोग चाहिए।' शुरुआत तो रवि कर चुके थे। बुजुर्गों का गजब का रिस्पॉन्स देखकर आशा और रवि को लगा कि वाकई बुजुर्ग उनके इस आइडिया को पसंद कर रहे हैं। अभी भी रिटायर्ड लोगों को काम की तलाश है। दोनों ने ठान लिया कि अब तो आगे की जिंदगी अपने जैसे बुजुर्गों को काम दिलाने में ही गुजारेंगे। धीरे-धीरे पानगड़िया दंपती बुजुर्गों के लिए नई आस बन गए। बुजुर्गों को नौकरियां भी मिलने लगीं। पर अखबार में बार-बार महंगे विज्ञापन देने का आर्थिक भार बहुत था। साथ ही बुजुर्गों और कंपनियों से संपर्क बनाए रखना कठिन काम था। ऐसे में उन्होंने सोचा कि किस तरह लोगों से स्थायी संपर्क साधा जाए। इंटरनेट से तो रवि और आशा दोनों वाकिफ थे ही, इसलिए दोनों ने सोच-विचाकर अपने परिचित मित्र से एक वेबसाइट बनाने की गुजारिश की और 30 जून, 2008 को रवि ने 'जॉब्सरिटायर्ड डॉट कॉम' नाम की एक वेबसाइट शुरू कर दी। फिर तो पानगड़िया दंपती को सारी समस्याओं से निजात मिल गई।


कोई फीस नहीं


पिताजी बी. एल. पानगड़िया के नाम पर स्थापित ट्रस्ट 'बी.एल. पानगड़िया मेमोरियल ट्रस्ट' इस वेबसाइट को मैनेज करता है। वेबसाइट को अपडेट करने के काम में पानगड़िया दंपती माहिर है। जब कोई बुजुर्ग इस वेबसाइट पर जाता है, तो निशुल्क लॉग इन करके खुद के बारे में मांगी गई जानकारियां भर सकता है। इसी तरह कंपनियां भी लॉग इन करके अपने यहां खाली पड़ी नौकरियां और इच्छित योग्यता भर देती हैं। दंपती कंपनियों को अपने पास आए आवेदनों को भेज देती हैं और इस तरह बुजुर्गों को नौकरियां पाने के लिए एक मंच मिल जाता है। जो लोग कंप्यूटर से पूरी तरह परिचित नहीं हैं, उनके लिए वेबसाइट में ईमेल की भी सुविधा है। काम के लिए अधिकतर आवेदन रिटायर्ड सरकारी और बैंक कर्मचारियों की तरफ से आ रहे हैं। आशा बताती हैं, 'वेबसाइट बनाने के बाद अब लोग आसानी से दुनिया के किसी भी हिस्से से नौकरी के लिए आवेदन कर सकते हैं। अब हमसे हर तरह के रिटायर्ड प्रोफेशनल संपर्क कर रहे हैं। वेबसाइट पर नौकरी के लिए जो पहला आवेदन आया था, वह आयकर विभाग के रिटायर्ड चीफ कमिश्नर का था।' इस काम के बारे में रवि बताते हैं, 'नौकरी दिलाने के इस काम में हालांकि 'हैल्पएज इंडिया' नौकरी चाहने वाले बुजुर्गों का संपर्क हमसे करवाता है। पर आर्थिक रूप से हम किसी से मदद नहीं ले रहे हैं। नौकरी लेने और देने वालों से हम किसी तरह का कोई पैसा नहीं लेते। वेबसाइट से पूरे देश के बुजुर्ग देश में हर जगह नौकरियां पा रहे हैं।' अपने आगे की योजना के बारे में आशा का कहना है, 'अभी देश में बुजुर्ग कंप्यूटर और इंटरनेट से पूरी तरह परिचित नहीं हुए हैं। ऐसे में हम रिटायर्ड लोगों को कंप्यूटर साक्षर बनाने की योजना बना रहे हैं।'


-आशीष जैन

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