22 January 2009

जीने की राह


प्रयास
कुआ नया-नया ही बना था। पनिहारिन ने पानी भरने के लिए कुए की जगत पर घड़ा रखा, तो वह लुढक़ने लगा। कुए की जगत पर लगा हुआ पत्थर हंसा और घड़े को बेपेंदे का कहकर उसकी खिल्ली उड़ाने लगा। घड़ा चुप रहा। लगातार कुछ दिन घड़ा उस जगह पर रखते-रखते वहां पर एक गोल गड्ढा सा बन गया। अब घड़ा स्थिर रखा जाने लगा। तब घड़े ने पत्थर से कहा- 'देख भाई पत्थर! मैंने निरंतर प्रयास से अपने कोमल अंगों की ही रगड़ से तुम्हारे कठोर शरीर में भी अपने लिए स्थान बना लिया।'
भाग्यवान
एक बूढ़ा किसी ठूंठ के नीचे बैठा सर्दी में सिकुड़ रहा था। पेड़ पर ऊपर की ओर दृष्टि डाली तो लगा कि वह भी उसी की तरह बूढ़ा हो गया है। बूढ़े ने अपने विगत वैभव की गाथा गाई और पेड़ के साथ सहानुभूति व्यक्त करते हुए कहा- तुम्हें भी मेरी ही तरह भाग्य ने सताया है न? ठूंठ ने कहा- मैं तुम्हारे जैसा दुखी नहीं हूं। बसंत निकट आ रहा है। मैं उसी की सुखद कल्पना में खोया रहता हूं और खुश रहता हूं कि न जाने कितने और बसंत देखने मेरे भाग्य में बदे हैं। मेरे भाग्यवान होने को धन्यवाद दो और अपने बीते हुए समय की चिंता मत करो।
- आशीष जैन

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1 comment:

  1. Bahut Badhiya Aashish Jee..Aap Vastva Me Kuch Nya Kar Rahe Hain Dono Post Bahut Achi Lagi. Badhayi...

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