27 November 2008

चांद पर तिरंगे की खुशबू




उत्तरप्रदेश के अमरोहा शहर की खुशबू मिर्जा ने इसरो में चंद्रयान प्रथम की सफलता में निभाई अहम भूमिका।

चांद पर अब तिरंगा भी लहरा रहा है। देश ने चंद्रयान के बहाने अपनी क्षमताओं का एक फिर परिचय दिया है। इस पूरे मिशन में एक ऐसी लड़की की मेहनत छुपी है जिसे बचपन से ही अंतरिक्ष की असीम गहराइयां लुभाती रही। उत्तरप्रदेश के छोटे से कस्बे अमरोहा से निकलकर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र (इसरो) तक पहुंचने वाली 23 साल की इस लड़की का नाम है- खुशबू। अपने नाम की तरह वह अपने काम से भी सबका दिल महका देती है। खुशबू चंद्रयान प्रथम के सैटेलाइट सिस्टम को तैयार करने वाली बारह सदस्यीय इंजीनियर टीम में शामिल है। इनके चेक आउट डिवीजन दल ने यान के हर पुर्जे की थर्मल और वैक्यूम जांच की।


बस कड़ी मेहनत करनी है


25 जुलाई, 1985 को अमरोहा के मोहल्ला चाहगौरी निवासी सिकंदर मिर्जा और फरहत मिर्जा के घर एक नन्ही कली खुशबू ने जन्म लिया। सात साल की उम्र में ही उसके सिर से पिता का साया उठ गया। पिता इंजीनियर थे, इसलिए मां ने ठान लिया कि अपने सभी बच्चों को भी इंजीनियर ही बनाना है। बच्चों को स्कूली शिक्षा के लिए परिवार के पेट्रोल पंप की जिम्मेदारी संभाली। आज खुशबू का बड़ा भाई खुशतर भी इंजीनियर कर चुका है और छोटी बहन महक भी यही पढ़ाई कर रही है। अपने पुराने दिनों की परेशानियों के बारे में खुशबू की मां फरहत बताती हैं, 'जब खुशबू पैदा हुई थी, तो यहां पीने के लिए पानी बहुत मुश्किल से मिलता था। मुझे कुएं से पानी लाना पड़ता था। हमारे इलाके में महिलाएं बुरका पहनती थी, पर खुशबू को जींस पहनना पसंद था। लोग तरह-तरह की बातें करके हमें परव्शान करते थे। पर मैं उससे हमेशा कड़ी मेहनत करने को कहती थी।'


खुशबू की शुरुआती पढ़ाई स्थानीय कृष्णा बाल मंदिर में हुई। सन्‌ 2000 में वह दसवीं कक्षा में 73 फीसदी अंक पाकर टॉपर बनी। आगे की पढ़ाई उसने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से पूरी की। 2002 में इंटर की परीक्षा में 83 फीसदी अंक पाकर फिर से टॉपर बनी। स्कूल के दिनों में वह वॉलीबॉल की अच्छी खिलाड़ी रही। उसने वॉलीबॉल के लिए उत्तरप्रदेश राज्य का प्रतिनिधित्व भी किया। इसी की बदौलत खेल कोटा से अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से बीटेक(इलेक्ट्रोनिक्स) करने का मौका मिला। 2006 में बीटेक में 96 फीसदी अंक प्राप्त करके वह विश्वविद्यालय की गोल्ड मैडलिस्ट भी बनी।
पैसा नहीं दिल की खुशी चाहिए


बीटेक के बाद उसने बहुराष्ट्रीय कंपनी एडोबे में अच्छी नौकरी का प्रस्ताव ठुकरा दिया और नवंबर 2006 में आधी तनख्वाह में इसरो से जुड़ गई। काम के प्रति लगन को देखते हुए जनवरी 2007 में उसे चंद्रयान मिशन के लिए चुना गया। तब से लेकर अब तक वह लगातार चंद्रयान के सफलतापूर्वक चांद की जमीन पर उतरने के लिए दुआ करती रही और आखिरकार यह मिशन सफल भी रहा। अब हिंदुस्तान अमरीका, रूस और जापान के बाद चांद पर झंडा गाड़ने वाला चौथा देश बन गया है। खुशबू मानती हैं,' हां मैं आधुनिक वेशभूषा पहनती हूं। पर मैं साथ में अपनी परंपराओं का निर्वहन भी करती हूं। मैं दिन में पांच बार नमाज अदा करती हूं और रमजान के महीने में रोजे भी रखती हूं। हर भारतीय की तरह मैं भी शुरू से ही अंतरिक्ष कार्यक्रमों को लेकर उत्सुक रही। चंद्रयान का प्रक्षेपण मेरे लिए बड़ा रोमांचकारी अनुभव रहा और मुझे इस दौरान काफी कुछ सीखने को मिला।'


- आशीष जैन

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