01 November 2008

असली परीक्षा तो माता-पिता की है




क्या इन दिनों आपके घर का माहौल बदला हुआ है? बच्चों की परीक्षा ने आपको टेंशन में डाल दिया है। बच्चे क्या पढ़ें, कैसे पढ़ें, क्या खाएं, क्या पिएं, कब सोएं, कब जागें- ढेरों सवाल आपके दिमाग में भी घूमते रहते हैं। घूमने भी चाहिए। अरे भई! आप बच्चों के माता-पिता जो हैं। इन दिनों आपके बच्चे ही इम्तहान नहीं दे रहे, बल्कि आप भी परीक्षा दे रहे हैं जनाब!

मधु, निशा, अनन्या और माधुरी शाम के समय बतिया रही थी। चारों के बच्चों के एग्जाम चल रहे हैं। चारों इन दिनों अपने बच्चों को लेकर काफी पशोपेश में हैं। सब अपना-अपना दुखड़ा एक-दूसरे को सुनाने लगती हैं। मधु कहती है, 'मेरी बेटी ने तो इन दिनों खाना-पीना बिल्कुल छोड़ दिया है।' इस पर माधुरी बोलती है, 'मेरा बेटा रोहित तो हमेशा टेंशन में रहता है कि अच्छे नंबर आएंगे भी या नहीं।' अनन्या की अलग ही परेशानी है। उसका बेटा इन दिनों ठीक से सो ही नहीं पा रहा है। निशा कहती है, 'मेरी बिटिया तो चौबीसों घंटे किताबों के चिपकी रहती है, ना हंसती है, ना बात करती है।' चारों सोचती हैं कि हमें बच्चों को किसी डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए। चारों सहेलियां अपने बच्चों की समस्याएं आपस में बांट ही रही थी कि उनकी डॉक्टर सहेली हेमलता आती है और उनकी बातों में शामिल हो जाती है। उनकी बातें सुनकर हेमलता कहती है, 'तुम यूं ही घबराती हो। बच्चों में एग्जाम के दिनों में ये समस्याएं आ सकती हैं। डॉ. के पास जाने के बजाय तुम्हें ही कुछ करना चाहिए। तुम्हें समझना चाहिए कि अब बच्चों की परीक्षा के साथ-साथ तुम्हारी भी परीक्षा है।
जी हां, हेमलता सही कह रही हैं। एग्जाम के दिनों में सभी मांओं की हालत इन चार सहेलियों जैसी हो जाती है। पर परीक्षा की इस घड़ी को सिर्फ अपने बच्चों की परीक्षा ना समझें, यह समय आपके लिए भी किसी परीक्षा से कम नहीं है। बच्चों की एग्जाम की टेंशन को थोड़ी सी समझदारी से सुलझाया जा सकता है।

माता-पिता ही सर्वश्रेष्ठ काउंसलर
एनसीईआरटी से ट्रेनिंग प्राप्त काउंसलर गीतांजलि कुमार का कहना है, 'परीक्षा के दिनों में एक बच्चे के लिए माता-पिता ही सबसे अच्छे काउंसलर साबित हो सकते हैं। मां-पिता बच्चे को नजदीक से जानते हैं और उसकी भावनाओं को अच्छे से समझ सकते हैं। अगर बच्चे को कोई भी परेशानी महसूस हो, तो माता-पिता को खुद आगे होकर बच्चों से बात करनी चाहिए।' माता-पिता को बच्चों के सामने एक दोस्त की भूमिका निभानी होगी, तभी बच्चे एग्जाम के डर के बारे में उनसे बातचीत कर पाएंगे। माता-पिता को बच्चे को यकीन दिलाना चाहिए कि परीक्षाएं जीवन-मरण का प्रश्न नहीं हैं। बच्चों में भरोसा पैदा करने के लिए उन्हें याद दिलाना चाहिए कि उन्होंने पूरी साल पढ़ाई की है और अब एग्जाम भी अच्छे ही होंगे। साइकेट्रिस्ट डॉ. रेशमा अग्रवाल का मानना है, 'परीक्षा के दिनों में अगर पूरा परिवार बच्चे के साथ रहेगा, तो उसे रिलेक्स महसूस होगा और उसमें एंग्जाइटी भी पैदा नहीं होगी।'

नाक का सवाल नहीं
चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट डॉ. अंजलि मुखर्जी का कहना है, 'माता-पिता को अपने बच्चे की एग्जाम को नाक का सवाल नहीं बनाना चाहिए।' बच्चे पर कभी प्रेशर ना बनाएं कि फलां से ज्यादा नंबर आने चाहिए या फलां का पेपर तो बहुत अच्छा हुआ है। पेपर देने के बाद अपने बच्चे से यह कभी नहीं पूछें कि कितने नम्बर आएंगे? बच्चा अगर अपने दोस्त के साथ पढ़ाई करने जाता है, तो उस पर शक न करें। करियर, सोसाइटी, नौकरी की बातों को अच्छे नंबर्स के साथ जोडक़र पेश न करें। बच्चों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से उन्हें बताएं, 'अभी तो बहुत समय है। तुम, कर सकते हो।' बच्चों को अपनी पढ़ाई और एग्जाम के अच्छे अनुभवों के किस्से सुनाएं। इससे बच्चों को लगेगा कि मम्मी-पापा ने भी तो एग्जाम दी है। वे सही ही सलाह दे रहे हैं। एग्जाम के दिनों में बच्चों को कभी पढ़ाई के विषय में अपमानित न करें। बच्चों में असुरक्षा की भावना को पनपने की बजाय उनकी हर बात को ध्यान और धैर्य से सुनें। माता-पिता को बच्चों को एग्जाम के दिनों में गहरी सांस लेने व छोडऩे की सलाह देनी चाहिए। सबसे सही और उपयुक्त बात तो यही है कि बच्चों को आप पर पूरा यकीन हो जाए और वे कहने लगें, 'मुझे कोई टेंशन कैसे हो सकती है, मेरे मम्मी-पापा मेरे साथ जो हैं।' तभी आप भी इस एग्जाम में पास माने जाएंगे।

तैयार रहें आप भी
परीक्षा के दिनों में माता-पिता को बच्चे की दिनचर्या सामान्य बनाए रखने की कोशिश करनी चाहिए। काउंसलर बिंदु प्रसाद कहते हैं, 'एग्जाम के दिनों में अपने बच्चों को समझाएं, कि वे अपनी नियमित दिनचर्या में कतई फेर-बदल न करें। सामान्य दिनों की तरह ही हल्का-फुल्का समय मनोरंजन के लिए भी निकालें।' माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों का स्टडी रूम व्यवस्थित रूप से जमा दें। एग्जाम हॉल में ले जाने वाली जरूरी चीजों को नियत स्थान पर रखें। माता-पिता को चाहिए, एग्जाम के दिनों में बच्चा साफ कपड़े पहने, ताकि उसका तन-मन अच्छा रहे और पढ़ाई ध्यान से कर पाएं। पढ़ाई की जगह हवादार हो और कमरे में में पर्याप्त रोशनी हो। परीक्षाओं के दिनों में मम्मी-पापा को भी टीवी कम ही देखना चाहिए, ताकि उनके बच्चों का ध्यान ना भटके।
डाइट कंसलटेंट आरती शाह का मानना है कि परीक्षा के दिनों में बच्चों को आयरन और प्रोटीन से भरपूर भोजन खिलाना चाहिए। बच्चों को वसा युक्त, तला-भुना और गरिष्ठ भोजन नहीं दें। साथ ही माता-पिता को यह भी ख्याल रखना चाहिए कि बच्चे को लगातार और थोड़ा-बहुत खाने को देते रहें। ज्यूस और ठंडा पानी भी पिलाते रहना चाहिए। द्गयूस में अगर थोड़ा नमक मिलाकर देंगे, तो बच्चों के शरीर में नमक की कमी भी नहीं होगी। सबसे जरूरी बात है कि एग्जाम के दिनों में बच्चों को याददाश्त बढ़ाने वाली दवाइयां कतई न दें। बच्चों को खुद पर विश्वास बनाए रखने की सलाह दें। बच्चों को देर रात तक पढ़ाई की राय देने से भी बचें। हां! सुबह जल्दी जगाकर उन्हें कुछ देर टहलने को कहें और फिर पढ़ाई की बातें करें। उनके कोर्स को और पेपर पैटर्न को आप भी समझने की कोशिश करें। अगर बच्चे के मन में परीक्षाओं से संबंधित कोई सवाल है, तो उसे टालें नहीं, उसका सही जवाब दें।
-आशीष जैन

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