26 November 2009

हां, हम एचआईवी पॉजिटिव हैं

कौशल्या पेरियासामय पहली ऐसी हिंदुस्तानी महिला हैं, जिन्होंने पूरी दुनिया के सामने कबूला, 'हां, मैं एचआईवी पॉजिटिव हूं।' आज वे अपने जैसी हजारों महिलाओं के कारवां को साथ लेकर लड़ रही हैं, एड्स और एचआईवी पॉजिटिव के खिलाफ जंग।


'जब दर्द के लिए कोई भी दवा काम नहीं कर पाती, तो दुआएं असर करती हैं। आइए, हम सब मिलकर इन महिलाओं के दर्द को समझें, कोशिश करें कि इनका दर्द कम हो और कुछ नहीं कर सकते, तो कम से कम एचआईवी पॉजिटिव महिलाओं के लिए दुआ करें।' कौशल्या खुद एचआईवी पॉजिटिव हैं, पर अपने दर्द को भूलकर आज वे अपने जैसी हजारों महिलाओं की आवाज को बुलंद कर रही हैं। एचआईवी पॉजिटिव महिलाओं के लिए वे दवा और दुआ दोनों हैं। उनका कारवां बढ़ता जा रहा है। जब वे एड्स या एचआईवी के बारे में बोलती हैं, तो उनकी पीछे लगभग 7000 महिलाओं का हौसला बोलता है।

पति से मिला एचआईवी
कौशल्या पेरियासामय चेन्नई स्थित पॉजिटिव वुमंस नेटवर्क की अध्यक्ष हैं। 20 साल की उम्र में जब उनकी शादी हुई, तो वे आने वाली जिंदगी को लेकर काफी उत्साहित थीं। पर शायद भाग्य को यह मंजूर नहीं था। उनका पति एचआईवी पॉजिटिव था और किसी को इस बारे में खबर नहीं थी। 34 साल की कौशल्या पिछले दिनों को याद करते हुए बताती हैं, 'मेरी शादी के कुछ दिनों बाद मुझे पता लगा कि मेरे पति एचआईवी पॉजिटिव हैं। 1995 में शादी के कुछ हफ्ते बाद ही यह बात मुझे पता लग गई थी। मेरे पति ने शादी से पहले यह बात मुझे नहीं पता लगने दी। उस समय तक मुझे पता नहीं था कि एचआईवी क्या होता है? हालांकि मैंने नर्सिंग का कोर्स कर रखा था। मुझे बस इतना पता था कि एड्स का मतलब मौत है।' अपने पति से मिले धोखे से दुखी होकर कौशल्या अपनी नानी के घर आई गईं। उन्होंने आखिरी बार अपने पति को उस समय देखा, जब उसे पता लगा कि वह दूसरी शादी करने जा रहा है, हालांकि उनका पति दूसरी शादी नहीं कर पाया। सात महीने बाद उसकी मौत हो गई।
मकसद है चेहरे पर मुस्कान
जब उन्हें पता लगा कि उनके पति से अनजाने में वे भी एचआईवी पॉजिटिव हो गई हैं, तो उन्होंने तमिलनाडु में पैतृक निवास नामक्कल जाकर लड़कियों को इसके बारे में शिक्षित करना शुरू कर दिया। उन्होंने एड्स और एचआईवी पॉजिटिव महिलाओं के बारे में पता लगाना शुरू किया। उन्हें पता लगा कि नामक्कल में 75 फीसदी से ज्यादा विधवा औरतों के पति एचआईवी पॉजिटिव थे और लगभग 98 फीसदी महिलाओं भी अपने पति के माध्यम से एचआईवी पॉजिटिव हो चुकी थीं। ज्यादातर महिलाएं अपनी परेशानियों को किसी के साथ बांटना पसंद नहीं करती थीं। ऐसे में कौशल्या ने उन्हें जागरुक करने का बीड़ा उठाया और उन्हें एड्स और एचआईवी के बारे में अपने अनुभव लोगों को बताने की अपील की। कौशल्या ने अपनी जैसी महिलाओं को इकट्ठा करना शुरू किया और अक्टूबर, 1998 में चार महिलाओं के साथ स्वयं सहायता समूह 'पॉजिटिव वुमंस नेटवर्क' बना लिया। इसका मकसद साफ है- एचआईवी पॉजिटिव के साथ जिंदगी गुजार रही महिलाओं के चेहरे पर मुस्कान लाना। सिर्फ 18 महिलाओं को साथ लेकर शुरू किया गया नेटवर्क आज एचआईवी पॉजिटिव महिलाओं के लिए एक मंच बन चुका है। इस मंच की मदद से इन महिलाओं को जिंदगी का मुकाबला करने की ताकत मिलती है। नेटवर्क एड्स के बारे में जागरूकता के साथ-साथ बेहतर उपचार और सुविधाओं के लिए काम कर रहा है। आज कई अंतरराष्ट्रीय संगठन जैसे यूनिफेम और यूएनएड्स उनके काम को सहयोग दे रहे हैं।
समाज को सोच बदलनी होगी
कौशल्या का मानना है कि हम महिलाओं को अपनी लड़ाई खुद लडऩी है। हम मदद के लिए किसी की चौखट पर जाने की बजाय खुद अपने पैरों पर खड़ा होने में भरोसा रखती है। शुरुआत में महिलाओं को कौशल्या के साथ खुलकर अपनी आवाज बुलंद करने में झिझक महसूस होती थी, पर वे जान चुकी हैं कि महिलाओं को डरकर नहीं, लड़कर अपना हक हासिल करना होगा। राजस्थान में श्रीगंगानगर, अजमेर, टोंक, सीकर और जयपुर में इस नेटवर्क का मकसद है कि एचआईवी पॉजिटिव महिलाओं को जागरुक करे,ताकि उनसे बच्चों में यह न फैले। नेटवर्क से जुड़ी महिलाएं अपनी समस्याओं एक-दूसरे से साझा करती हैं और एड्स से जुड़ी भ्रांतियों के बारे में सच्चाई बताती हैं। कौशल्या का मानना है, 'एचआईवी पॉजिटिव महिलाओं को आज भी समाज में गलत निगाह से देखा जाता है। हम चाहते हैं कि लोगों की धारणाएं बदलें। पति के अपराधों की सजा औरत को देना गलत बात है। हम सब मिलकर समाज को बताना चाहती हैं कि एचआईवी पॉजिटिव के साथ भी जिंदगी गुजारी जा सकती है। हमें तो शुरुआत में इसके बारे में जानकारी नहीं थी, पर अब हम समाज में दूसरी महिलाओं और लड़कियों को एड्स के बारे में सचेत करना चाहते हैं।' वाकई कौशल्या का कहना सही है कि एचआईवी पॉजिटिव होने पर महिलाओं को शर्मसार होने की जरूरत नहीं है, बल्कि अपने अनुभवों से दूसरी महिलओं को जागरूक बनाने की आवश्यकता है। आज यह नेटवर्क महिलाओं की काउंसलिंग करता है और उन्हें इस बीमारी के बारे में जरूरी जानकारी मुहैया कराता है। ऐसी एचआईवी पॉजिटिव महिलाएं, जिनके पति गुजर चुके हैं, उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए भी कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। महिलाओं को सरकारी योजनाओं का पूरा लाभ पहुंचाने के लिए भी यह नेटवर्क काम कर रहा है।
-आशीष जैन

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3 comments:

  1. काबिले तारीफ़ ज़ज्बा है......पर समाज में फैली संवेदनहीनता को ओर जगाने की जरुरत है

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  2. Classical Homeopathy se HIV thik ho jata hai, ek bar try jarur karen.

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  3. Classical Homeopathy se HIV thik ho jta hai. Ek bar try jarur karen.

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