18 November 2008

दिल में धड़के हिंदुस्तान



सोनल शाह अमरीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बराक ओबामा की खास सलाहकार बनने जा रही भारतीय मूल की अमरीकी नागरिक सोनल शाह को जानते हैं खुद उन्हीं की जुबानी-


मेरा काम मेरी पहचान है


यह नवंबर माह मेरे लिए सबसे खुशी का महीना साबित हुआ है। अब मुझे दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमरीका के राष्ट्रपति के साथ काम करने का मौका मिलेगा। अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा ने मुझे अपने 15 सदस्यीय सलाहकार मंडल में बतौर सदस्य शामिल किया है। यह समिति निजी और सार्वजनिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण अनुभव रखने वाले लोगों से मिलकर बनाई गई है। मैं ओबामा को प्रशासन चलाने के लिए काबिल लोगों के नामों की सिफारिश करूंगी। यह मेरे लिए वाकई गर्व की बात है। मैं एक अमरीकी अर्थशास्त्री हूं। अभी मैं गूगल डॉट ओरआरजी के साथ वैश्विक विकास दल में काम कर रही हूं। इससे पहले मैं गोल्डमैन एंड कंपनी की वाइस प्रेसीडेंट थी। वहां मैंने गोल्डमेन सोक्स की पर्यावरण संबंधी प्रोजेक्ट को पूरा करने में अहम भूमिका निभाई। मैं सेंटर ऑफ अमरीकन प्रोग्रेस में राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक नीति विभाग की सहायक निदेशक भी रह चुकी हूं। इसके साथ ही मैंने बोसनिया और कोसावो के युद्ध पीड़ित लोगों के लिए भी काम किया है और वहां से मुझे धैर्य, समर्पण जैसे कई गुण सीखने को मिले। कोई भी शख्स लगातार काम करके ही सीखता है, मैंने भी कई जगह और कई लोगों के साथ काम किया है। इसी की बदौलत आज इस मुकाम हैं।


देश के लिए जज्बात


मूलतः मैं गुजरात के साबरकांठा की हूं। मेरा जन्म 1968 में मुंबई में हुआ। सन्‌ 1970 में मेरव् पिताजी रमेश शाह गुजरात से जाकर न्यूयार्क में स्थायी तौर पर बस गए। 1972 में मैं भी अपनी मां कोकिला शाह के साथ न्यूयार्क जाकर बस गई। वहीं मेरी पढ़ाई-लिखाई हुई। मेरे भाई आनंद और बहन रूपल के साथ मिलकर मैंने 2001 में इंडीकॉप्स नाम के एक गैर सरकारी संस्था की स्थापना की। यह संस्था प्रवासी भारतीय को आपस में जोड़कर भारत में विकास के कामों में भागीदार बनाती है और भारत में डवलपमेंट प्रोजेक्ट्स के लिए भारतीय मूल के लोगों को एक साल की फैलोशिप देती है। मेरा मानना है कि देश से बाहर रहने वाले भारतीयों के मन में भी देश के लिए जज्बात होते हैं और वे हिंदुस्तान में सामाजिक कामों में भागीदारी करना चाहते हैं, पर उन्हें कोई मौका नहीं मिल पाता। इंडीकॉप्स के तहत युवा प्रवासी स्वेच्छा से भारतीय ग्रामीण लोगों की शिक्षा, जागृति, स्वास्थ्य जैसे विषयों पर एक साल तक भारत में काम करने के लिए आते हैं। इससे उन्हें ग्रामीण भारत की नई तस्वीर देखने का मौका मिलता है। सन्‌ 2003 में इंडिया एब्रोड प्रकाशन ने मुझे मेरे काम और नेतृत्व क्षमता के लिए 'पर्सन ऑफ द ईयर' घोषित किया।


आसमान छू सकते हैं


मुझे ओबामा की सोच और काम करने का तरीका बेहद पसंद है। वे बहुत स्पष्टवादी हैं। उनकी तरह मैं भी कहे हुए काम को अंजाम तक पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध रहती हूं। मुझे किताबें पढ़ने का बहुत शौक है और अच्छी एथलीट भी हूं। खासकर टेनिस और बॉलीबॉल तो मुझे बहुत भाते हैं। मैं स्वामी विवेकानंद को अपना आदर्श मानती हूं। वे कहा करते थे कि भयमुक्त होने पर ही इंसान कोई बड़ा काम कर सकता है। साथ ही मैं अपनी सफलता का श्रेय समाजसेवी पांडुरंग आठवाले को भी देती हूं। उन्हीं से मुझे समाज से करीब से जुड़ने की प्रेरणा मिली। मैं खुद को धन्य मानती हूं कि मुझे इतने अच्छे माता-पिता मिले, जिन्होंने सदा मेरा साथ दिया और हम काम में मेरी हौसला अफजाई की। मैं भारतीय युवाओं को हमेशा यही बात समझाती हूं कि उनमें क्षमता है बदलाव लाने की। वे समाज को एक नई दिशा दे सकते हैं। अगर आप आसमान के बारे में सोच सकते हैं, तो आसमान पा भी सकते हैं।


- आशीष जैन

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