06 September 2008

उम्र 70 की हौसले 17 के


शख्सियत- वैलेंटिना तेरेश्कोवा

उम्र- 70 साल

संघर्ष- बचपन में ही सिर से पिता का साया उठ गया। पढ़ाई के साथ-साथ एक टैक्सटाइल फैक्ट्री में भी काम किया।

उपलब्धि- पहली महिला अंतरिक्ष यात्री होने का गौरव प्राप्त।
'अब मैं मंगल ग्रह पर जाना चाहती हूं। फिर चाहे मेरे लिए यह यात्रा एक ही ओर की क्यों ना हो।' यह सुनीता विलियम्स या किसी नवयुवक की चाह भर नहीं है। यह उम्मीद है 70 साल की वैलेंटिना तेरेश्कोवा की। उम्र चाहे 70 की हो, पर उनके हौसले तो 17 साल के युवा को भी मात करते हैं। कौन हैं वैलेंटिना?
ये कोई आम महिला नहीं, बल्कि अंतरिक्ष में जाने वाली पहली महिला हैं। जहां एक ओर सन्‌ 1963 में रूस की महिला वैलेंटिना तेरेश्कोवा अंतरिक्ष में कदम रख चुकी थीं, वहीं अमरीका सन्‌ 1983 तक किसी महिला को अंतरिक्ष में नहीं भेज पाया। तेरेश्कोवा का यह अभियान बेहद गुप्त रखा गया था। रूस चाहता था कि अमरीका से पहले अंतरिक्ष में महिला भी वही भेजे। रूस के ही यूरी गागरिन ने अंतरिक्ष में सबसे पहले कदम रखा था।
जब तेरेश्कोवा प्रशिक्षण लेने जा रही थी तो उन्होंने अपनी मां से भी यह बात छुपा रखी थी। जब रव्डियो पर यान की उड़ान की घोषणा हुई, तो उनकी मां को पता लगा कि उनकी बेटी तो अंतरिक्ष की सैर पर जा रही है।
6 मार्च, 1937 को यारोस्लाव के निकट एक छोटे से गांव बोल्शोय मास्लेनिकोवो में वैलेंटिना का जन्म हुआ। बचपन में ही इनके सिर से पिता का साया उठ गया। इनके पिताजी रूसी सेना में टैंक लीडर थे, वे द्वितीय विश्व युद्ध में लड़ाई करते हुए मारव् गए। 18 साल की उम्र में पढ़ाई के साथ-साथ वह एक टैक्सटाइल फैक्ट्री में भी काम किया करती थी। 22 साल की उम्र में पैराशूट से पहली छलांग लगाने वाली तेरेश्कोवा ने स्कूल खत्म करने के बाद इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। 24 साल की उम्र में उन्होंने अंतरिक्ष यात्री बनने के लिए एप्लाई किया।
तेरेश्कोवा अपने पिता से बेहद प्यार करती थी। जब वे अंतरिक्ष यात्रा से लौटीं तो लोगों ने पूछा, 'ये धरती आपका आभार कैसे प्रकट करे ?' तो जवाब में तेरेश्कोवा बोली, 'बस वो जगह बता दो, जहां मेरे पिताजी लड़ाई में शहीद हुए थे।' उनकी इच्छा पूरी हुई और उस जगह को खोजकर उनके पिता का स्मारक बनाया गया। बकौल तेरेश्कोवा 'सन्‌ 1961 में मेरा चयन हुआ था। उस समय महिला पायलट बहुत कम हुआ करती थी। इसलिए यान उड़ाने का मौका पेराशूट उड़ाने वाली महिलाओं को मिला।' चयन के बाद 15 महीने प्रशिक्षण में गुजरव्। बहुत मुश्किलों और अंतरिक्ष में रहने के कठोर अभ्यास से तेरव्श्कोवा को गुजरना पड़ा। इस अभ्यास में स्पेस क्रॉफ्ट चलाना, झटकों को बर्दाश्त करना, अकेले रहना और भारहीनता के अनुभवों से गुजरना वाकई बुरी तरह थका देने वाली प्रक्रिया थी।
पर तेरेश्कोवा ने कभी हार नहीं मानी और हर चुनौती का डटकर सामना किया। इस सबके बाद आखिरकार वह दिन आया 16 जून 1963, जब वोस्तोक-6 को उड़ान भरनी थी। तेरेश्कोवा की बरसों की साधना पूरी होने वाली थी। वह बहुत उत्तेजक माहौल था। यह दो यानों का संयुक्त मिशन था। 14 जून 1963 को वोस्तोक-5 भी छोड़ा गया था। इस मिशन में दोनों यानों को एक ही समय में कक्षा में रहना था। दोनों यानों से अंतरिक्ष यात्रियों ने आपस में संपर्क भी किया। यान से तेरेश्कोवा ने धरती के 48 चक्कर लगाए और 70 घंटे 50 मिनट तक अंतरिक्ष में रहीं। उन्होंने वहां धरती के कई चित्र लिए जो बाद में वैज्ञानिकों के काफी काम में आए। तेरेश्कोवा कहती हैं,'यह 70 घंटे और 50 मिनट का समय मेरव् जीवन का सबसे रोचक समय था।'
वोस्तोक-6 के वापस लौटने पर यान से बाहर निकलने के बाद तेरेश्कोवा ने 20 हजार फीट की ऊंचाई से पैराशूट के माध्यम से जमीन पर पहुंची। लोगों ने पूछा कि अंतरिक्ष में जाकर कैसा लगा? तो उनका जवाब था 'मैं अपना काम पूरी शिद्दत से कर रही थी और मैं यान की सुरक्षा को लेकर भी चिंतित थी। इसके सबके बावजूद मैं भारहीनता का आनंद ले रही थी।' वापस लौटने पर उसके साथी उसे चिढ़ाया करते थे कि उसे तो आंद्रे निकोलायेव से शादी कर ही लेनी चाहिए। निकोलायेव भी अंतरिक्ष यात्रियों की जमात में एक अकेले ऐसे शख्स थे, जिनकी अभी तक शादी नहीं हुई थी। 3 नवंबर 1963 को तेरेश्कोवा और आंद्रे शादी के बंधन में बंध गए। इनकी बेटी का नाम था ऐलेना। ऐलेना दुनिया की पहली ऐसी महिला हैं जिनके मम्मी-पापा दोनों अंतरिक्ष की सैर करके आ चुके हैं।
तेरेश्कोवा ने ना केवल अंतरिक्ष विज्ञान में नाम कमाया, बल्कि उनमें सामजिक उत्थान की भी भावना थी। वे कई सालों तक सुप्रीम सोवियत की सदस्य रहीं। दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति नेलसन मंडेला ने उन्हें शताब्दी के नेता के पुरस्कार से सम्मानित किया। तेरेश्कोवा को अपने देश से बेहद लगाव है और वे रूस में अंतरिक्ष विज्ञान के प्रोत्साहन के लिए भी काम कर रही हैं।
-आशीष जैन

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