छपाक छई...
बादलों की बारात निकल रही है। बारिश की नन्ही बूंदें मदमस्त होकर जश्न मना रही हैं। हर कोई इस मौसम में खुद को भुलाकर खुशी में डूब गया है और आसमान से टपकते मोतियों को देखकर आल्हादित है।
टिपटिप कर बूंदे बरस रही हैं। बरसात की पहली बूंद तन को छूकर कर निकल गई है। लगता है मानो बरसों से बंजर पड़ी जमीन पर पहली बार कोई नन्हा अंकुर जन्मा हो। तन-मन प्रफुलि्लत होकर कह रहा है कि पहली बारिश में भीगने का आनंद जिसने नहीं लिया, उसके लिए तो संसार की हर खुशी बेमानी है। क्या महिला, पुरुष, बच्चे और क्या बुजुरग सभी तो इस बारिश में अपनी-अपनी उम्र को भुलाकर मस्ती में सराबोर हो जाते हैं। यहां तक कि पशु-पक्छी भी गाने-गुनगुनाते लगते हैं। बादलों के रथ पर बैठी ये बूंदे रथ की साऱथी भी हैं और सवारी भी। ये मोतियों की लडि़यां कभी हरे-हरे पत्तों पर आराम फरमाती हैं, तो कभी अनजान राहों पर लड़खड़ाती हुई बह जाती हैं। इस सब को देखकर मानो पूरी प्रकरति कह रही हो कि स्वागत हो...स्वागत हो पहली बरसात।
ऐसा नहीं कि बारिश की बूंदे टपकते ही लोग अपने-अपने घरों को बढ़ जाते हैं। वे तो निकल पड़ते हैं उस ठौर, जहां इस बारिश को पूरी तरह से जिया जा सके। चारों ओर हरियाली की चादर ओढ़े प्रकरति लोगों को आमंत्रित करती है और लोग भी उसके इस बुलावे को ठुकरा नहीं पाते और पहुंचते हैं पारकों में, पहाड़ों पर। फिऱ शुरू होता है पिकनिक और गोठ का सिलसिला। गोठ में भी ऐसा-वैसा कुछ नहीं- राजस्थान की खास दावत- दाल-बाटी-चूरमा। भई गरमा-गरम देसी घी में डूबी बाटी और मसालेदार दाल के साथ मीठा चूरमा, उस पर गजब की फुहारें। भई इस धरा पर ऐसा कौन होगा, जो इस रुत में मदहोश होकर रसखान की तरज पर बड़ी से बड़ी जागीर ना ठुकरा दे। एक के बाद एक गोठें, मौसम ही कुछ ऐसा है। ना पेट की फ्रिक, ना किसी तरह खाने में कोई लिहाज। बस खाना है और मौसम का लुत्फ उठाना है।
वहीं दूसरी ओर महिलाएं तो ना जाने कब से इस झमाझम का इंतजार कर रही होती हैं? भई वजह भी तो साफ है। लाल, गुलाबी,नीले, पीले और सतरंगी लहरिए पहनकर पिया को रिझाना जो है, नदी किनारे लगे पीपल के पेड़ पर लगे झूले पर सखी-सहेलियों के साथ हिचकोले जो खाने हैं। एक-दूसरे को उनके पति के नाम को लेकर जो छेड़छाड़ बरसात के मौसम में होगी, वैसा मौका और कभी थोड़े ही मिलने वाला है। घर के आंगन के बाहर पिया के संग बैठकर गरमागरम चाय और पकौड़ी के साथ दिल से जुड़ी मीठी-मीठी बातें करना भला किस वामा को नहीं सुहाएंगी।
बच्चों के लिए इस बरसाती मौसम में क्या कुछ खास है, यह हमसे मत पूछिए। भई रिमझिम का यह मौसम तो बनाइ ही बच्चों के लिए है। अपने-अपने स्कूल बैग पीठ पर लादे बच्चे झुंड बनाकर सड़क पर बह रहे पानी के साथ जिस तरह छपाक-छई करते हैं, उसे देखकर वापस बचपन में लौटने का मन करने लगता है। घर आकर भी बच्चे चुप थोड़े ही बैठ जाएंगे। भई फुल मस्ती करेंगे। मम्मी डांटेंगी, तो पापा कहेंगे, जाओ छत पर और खूब नहाओ। फिर तो मानो मिल गई आजादी और तब देखिए उनकी धमाचौकड़ी। हां कुछ बच्चे भी ऐसे हैं, जो बारिश से हिचकते हैं, पर वे भी घर के बाहर बह रहे पानी में कागज की कश्ती बनाकर उसे पानी में छोड़ना थोड़े ही भूलते हैं। हां अगर पापा की इजाजत मिल जाए, तो अपनी नाव का पीछे करते-करते घर से दूर तक भी पहुंच जाते हैं।
इस भीगी-भीगी रुत में कभी आपने अपने दादा-दादी या नाना-नानी के साथ समय गुजारा है। अगर नहीं, तो उनके साथ लंबी सैर पर निकल जाइए। हां, एक बात, जाना पैदल ही। फिर देखना कैसे वे आपको अपनी जवानी के रोचक किस्से सुनाने लगेंगे और पूरा समय कब गुजर जाएगा, आपको पता ही नहीं चलेगा। उस समय आप उन्हें कुछ खाने-पीने से मत टोकना कि आपको डायबिटिज है या गठिया है। अगर आइसक्रीम मांगे, तो वहीं लाकर देनी पड़ेगी। आखिर जब मन की पोटली खुलती है, तो उसे यूं ही समेटना नहीं चाहिए। इससे आपको मोती ही मिलेंगे, जो इस सुहावने मौसम में और चार चांद लगा देंगे।
अगर इन सारी बातों के बीच युवा दोस्तों का जिक्र ना किया जाए, तो लगेगा कि कुछ छूट गया है। बारिश की पहली बूंद के साथ ही कालेज-स्कूल के दोस्तों के मोबाइल फोन बजने लगते हैं। सब की एक ही बात होती है, अरे बाइक उठा और फलां जगह आजा। फिर दो दोस्त मिले नहीं कि हल्की-हल्की फुहारों के बीच सड़कों पर घंटों बाइक लेकर यूं घूमते रहेंगे मानो इस दुनिया के वे ही शहंशाह हैं।
अब जब सब लोग ही मस्ती करने पर उतारूं हैं, तो आप क्यों घर में दुबके बैठे हैं। बारिश आपको बुला रही है। भूल जाइए छाता, रेनकोट, सरदी-जुकाम और आ चढ़ जाने दीजिए मौसम की खुमारी। आज कोई ना-नुकर नहीं चलेगी, तो फिर शुरू कर दीजिए आप भी ताक- धिना- धिन।
-आशीष जैन
बादलों की बारात निकल रही है। बारिश की नन्ही बूंदें मदमस्त होकर जश्न मना रही हैं। हर कोई इस मौसम में खुद को भुलाकर खुशी में डूब गया है और आसमान से टपकते मोतियों को देखकर आल्हादित है।
टिपटिप कर बूंदे बरस रही हैं। बरसात की पहली बूंद तन को छूकर कर निकल गई है। लगता है मानो बरसों से बंजर पड़ी जमीन पर पहली बार कोई नन्हा अंकुर जन्मा हो। तन-मन प्रफुलि्लत होकर कह रहा है कि पहली बारिश में भीगने का आनंद जिसने नहीं लिया, उसके लिए तो संसार की हर खुशी बेमानी है। क्या महिला, पुरुष, बच्चे और क्या बुजुरग सभी तो इस बारिश में अपनी-अपनी उम्र को भुलाकर मस्ती में सराबोर हो जाते हैं। यहां तक कि पशु-पक्छी भी गाने-गुनगुनाते लगते हैं। बादलों के रथ पर बैठी ये बूंदे रथ की साऱथी भी हैं और सवारी भी। ये मोतियों की लडि़यां कभी हरे-हरे पत्तों पर आराम फरमाती हैं, तो कभी अनजान राहों पर लड़खड़ाती हुई बह जाती हैं। इस सब को देखकर मानो पूरी प्रकरति कह रही हो कि स्वागत हो...स्वागत हो पहली बरसात।
ऐसा नहीं कि बारिश की बूंदे टपकते ही लोग अपने-अपने घरों को बढ़ जाते हैं। वे तो निकल पड़ते हैं उस ठौर, जहां इस बारिश को पूरी तरह से जिया जा सके। चारों ओर हरियाली की चादर ओढ़े प्रकरति लोगों को आमंत्रित करती है और लोग भी उसके इस बुलावे को ठुकरा नहीं पाते और पहुंचते हैं पारकों में, पहाड़ों पर। फिऱ शुरू होता है पिकनिक और गोठ का सिलसिला। गोठ में भी ऐसा-वैसा कुछ नहीं- राजस्थान की खास दावत- दाल-बाटी-चूरमा। भई गरमा-गरम देसी घी में डूबी बाटी और मसालेदार दाल के साथ मीठा चूरमा, उस पर गजब की फुहारें। भई इस धरा पर ऐसा कौन होगा, जो इस रुत में मदहोश होकर रसखान की तरज पर बड़ी से बड़ी जागीर ना ठुकरा दे। एक के बाद एक गोठें, मौसम ही कुछ ऐसा है। ना पेट की फ्रिक, ना किसी तरह खाने में कोई लिहाज। बस खाना है और मौसम का लुत्फ उठाना है।
वहीं दूसरी ओर महिलाएं तो ना जाने कब से इस झमाझम का इंतजार कर रही होती हैं? भई वजह भी तो साफ है। लाल, गुलाबी,नीले, पीले और सतरंगी लहरिए पहनकर पिया को रिझाना जो है, नदी किनारे लगे पीपल के पेड़ पर लगे झूले पर सखी-सहेलियों के साथ हिचकोले जो खाने हैं। एक-दूसरे को उनके पति के नाम को लेकर जो छेड़छाड़ बरसात के मौसम में होगी, वैसा मौका और कभी थोड़े ही मिलने वाला है। घर के आंगन के बाहर पिया के संग बैठकर गरमागरम चाय और पकौड़ी के साथ दिल से जुड़ी मीठी-मीठी बातें करना भला किस वामा को नहीं सुहाएंगी।
बच्चों के लिए इस बरसाती मौसम में क्या कुछ खास है, यह हमसे मत पूछिए। भई रिमझिम का यह मौसम तो बनाइ ही बच्चों के लिए है। अपने-अपने स्कूल बैग पीठ पर लादे बच्चे झुंड बनाकर सड़क पर बह रहे पानी के साथ जिस तरह छपाक-छई करते हैं, उसे देखकर वापस बचपन में लौटने का मन करने लगता है। घर आकर भी बच्चे चुप थोड़े ही बैठ जाएंगे। भई फुल मस्ती करेंगे। मम्मी डांटेंगी, तो पापा कहेंगे, जाओ छत पर और खूब नहाओ। फिर तो मानो मिल गई आजादी और तब देखिए उनकी धमाचौकड़ी। हां कुछ बच्चे भी ऐसे हैं, जो बारिश से हिचकते हैं, पर वे भी घर के बाहर बह रहे पानी में कागज की कश्ती बनाकर उसे पानी में छोड़ना थोड़े ही भूलते हैं। हां अगर पापा की इजाजत मिल जाए, तो अपनी नाव का पीछे करते-करते घर से दूर तक भी पहुंच जाते हैं।
इस भीगी-भीगी रुत में कभी आपने अपने दादा-दादी या नाना-नानी के साथ समय गुजारा है। अगर नहीं, तो उनके साथ लंबी सैर पर निकल जाइए। हां, एक बात, जाना पैदल ही। फिर देखना कैसे वे आपको अपनी जवानी के रोचक किस्से सुनाने लगेंगे और पूरा समय कब गुजर जाएगा, आपको पता ही नहीं चलेगा। उस समय आप उन्हें कुछ खाने-पीने से मत टोकना कि आपको डायबिटिज है या गठिया है। अगर आइसक्रीम मांगे, तो वहीं लाकर देनी पड़ेगी। आखिर जब मन की पोटली खुलती है, तो उसे यूं ही समेटना नहीं चाहिए। इससे आपको मोती ही मिलेंगे, जो इस सुहावने मौसम में और चार चांद लगा देंगे।
अगर इन सारी बातों के बीच युवा दोस्तों का जिक्र ना किया जाए, तो लगेगा कि कुछ छूट गया है। बारिश की पहली बूंद के साथ ही कालेज-स्कूल के दोस्तों के मोबाइल फोन बजने लगते हैं। सब की एक ही बात होती है, अरे बाइक उठा और फलां जगह आजा। फिर दो दोस्त मिले नहीं कि हल्की-हल्की फुहारों के बीच सड़कों पर घंटों बाइक लेकर यूं घूमते रहेंगे मानो इस दुनिया के वे ही शहंशाह हैं।
अब जब सब लोग ही मस्ती करने पर उतारूं हैं, तो आप क्यों घर में दुबके बैठे हैं। बारिश आपको बुला रही है। भूल जाइए छाता, रेनकोट, सरदी-जुकाम और आ चढ़ जाने दीजिए मौसम की खुमारी। आज कोई ना-नुकर नहीं चलेगी, तो फिर शुरू कर दीजिए आप भी ताक- धिना- धिन।
-आशीष जैन
bheege bheege mausam ki har baat dil me ghar kar gai......
ReplyDeleteisi tarah sajiv chitran karte rahen
हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है. नियमित लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं.
ReplyDeleteवर्ड वेरिपिकेशन हटा लें तो टिप्पणी करने में सुविधा होगी. बस एक निवेदन है.
बौछारें खूब अच्छी है. मैं सोच रहा हूं छत्तीसगढ़ में इस बार पानी कम गिरा है, फसलों का क्या होगा.
ReplyDeleteबढिया प्रयास है आपका, धन्यवाद । इस नये हिन्दी ब्लाग का स्वागत है ।
ReplyDeleteशुरूआती दिनों में वर्ड वेरीफिकेशन हटा लें इससे टिप्पयणियों की संख्या प्रभावित होती है
(लागईन - डेशबोर्ड - लेआउट - सेटिंग - कमेंट - Show word verification for comments? No)
मेरी यूरोप यात्रा की एक झलक’
आरंभ ‘अंतरजाल में छत्तीसगढ का स्पंदन’
Utkrisht...
ReplyDeleteAti Utkrisht...
Utkrisht...
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