कलम के बूते
आइए जानते हैं आजादी के बारे में कुछ खास लोगों की राय।
गुलाम का न दीन है, न धर्म है, गुलाम के रहीम हैं न राम हैं।
- देवराज दिनेश (भारत मां की लोरी)
क्या मैं अपने ही देश में गुलामी करने के लिए जिंदा रहूं? नहीं, ऐसी जिंदगी से मर जाना अच्छा। इससे अच्छी मौत मुमकिन नहीं।
- प्रेमचंद (गुप्तधन)
पिंजरा तो सोने का होने पर भी पिंजरा ही रहेगा।
- रांगेय राघव (कल्पना)
जंगल में रहने वाले पक्षी की अपेक्षा पिंजड़े का पक्षी ही अधिक फड़फड़ाता है।
- शरतचंद्र (बड़ी बहन)
जितने भी बंधन है, वे सब अबलों के ही अर्थ,बंधन बंधन ही है, तोड़ो यदि तुम सबल समर्थ।
- मैथिलीशरण गुप्त (द्वापर)
विचार और कार्य की स्वतंत्रता ही जीवन, उन्नति और कुशल-क्षेम का एकमेव साधन है।
- विवेकानंद
जो स्वतंत्र है, सारी प्रकृति उसकी अभ्यर्थना करती है, संपूर्ण विश्व उसके आगे सिर झुकाता है।
-स्वामी रामतीर्थ
स्वाधीनता सद् गुणों को जगाती है, पराधीनता दुगुर्णों को।
-प्रेमचंद(कायाकल्प)
स्वतंत्रता का मर्म समता है। विषमता में स्वतंत्रता भंग हो जाती है।
डॉ. रामानंद तिवारी
स्वतंत्रता अनुभव करना ही जीवन है। पराभूत सजीव होकर भी मृत है।
- यशपाल (दिव्या)
बेड़ियों में बंद राजा होने से तो आसमान का स्वतंत्र कबूतर होना ज्यादा अच्छा है।
- चंद्रप्रभ (प्याले में तूफान)
आजादी, सुख-समृद्धि, प्रेम, आशा और विश्वास ही भोर है।
- रामदरश मिश्र (जल टूटता हुआ)
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