गांधी आज भी हैं!
कुछ समय पहले कहा जाता था कि गांधी के विचार सिर्फ किताबों तक सिमटकर रह गए हैं। नई पीढ़ी गांधी का सिर्फ नाम याद रखेगी। पर अब यह बात गलत साबित होती दिखाई दे रही है। आज जहां विश्व में हिंसा और आतंकवाद बढ़ रहा है वहां गांधीवाद उसे खत्म करने के लिए एक प्रभावकारी विकल्प के रूप में उभरकर सामने आ रहा है। तकनीक से लेकर मैनेजमेंट तक गांधीजी के विचार उपयोगी साबित हो रहे हैं।
कुछ समय पहले कहा जाता था कि गांधी के विचार सिर्फ किताबों तक सिमटकर रह गए हैं। नई पीढ़ी गांधी का सिर्फ नाम याद रखेगी। पर अब यह बात गलत साबित होती दिखाई दे रही है। आज जहां विश्व में हिंसा और आतंकवाद बढ़ रहा है वहां गांधीवाद उसे खत्म करने के लिए एक प्रभावकारी विकल्प के रूप में उभरकर सामने आ रहा है। तकनीक से लेकर मैनेजमेंट तक गांधीजी के विचार उपयोगी साबित हो रहे हैं।
1.रामाल्लाह में फिलीस्तीन प्रधानमंत्री मोहम्मद अब्बास ने रिचर्ड एटेनबरो की फिल्म गांधी में गांधी का किरदार निभाने वाले बेन किंग्स्ले के साथ 'गांधी' फिल्म देखी और फिलिस्तीन व इजरायल के बीच की समस्या को शांति से सुलझाने की बात की।
2. लखनऊ में लोगों ने शराब की दुकानें बंद करवाने के लिए सबको गुलाब भेंट किए और शराबबंदी का आह्वान किया।
3. 7 जनवरी, 2008 को नासिक की केंद्रीय जेल से एक कैदी लक्षण तुकाराम गोले ने महात्मा गांधी की आत्मकथा 'सत्य के प्रयोग' पढ़कर अपने अपराधों को कबूल कर लिया।
4. मिस्त्र के कई राजनीतिक दल मिलकर पूरी तरह अहिंसक 'काफिया' आंदोलन चला रहे हैं।
5. मलेशिया में हिंदू अधिकारों के लिए लड़ रहे संगठन हिंदू राइट्स एक्शन फोर्स 'हिंदराफ' के तत्त्वावधान में आगामी 16 फरवरी, 2008 को कम से कम दस हजार मलेशियाई भारतीय वहां की संसद के बाहर लोगों को लाल व पीले गुलाब भेंट कर अपने शांतिपूर्ण संघर्ष को प्रदर्शित।
गांधी को अब दुनिया आशा की नजर से देख रही है। उनके विचारों से पूरी दुनिया अपनी- अपनी समस्याओं का समाधान खोज रही है। उनके सत्य और अहिंसा के प्रयोग अपनाने में लोगों को रुझान तेजी से बढ़ रहा है। फिर चाहे वह तकनीक हो, लड़ाई हो या तीव्र प्रतिक्रिया। हर जगह गांधी का असर देखा जा रहा है। गांधी आज हमारव् बीच नहीं हैं, पर उनकी बातें और सिद्धात जीवंत हैं। ईमानदारी से अगर यह कहा जाए, तो गांधीजी अभी जिंदा हैं, दुनिया के विचारों, कर्मों और बातों में।
युवाओं ने थामे अहिंसा के झंडे
आज हिंसा से त्रस्त पूरी दुनिया को अहिंसा ही एकमात्र रास्ता नजर आ रहा है। अनेक हिंसाग्रस्त इलाकों में युवा छात्र-छात्राएं अहिंसा का प्रचार-प्रसार करने में जुटे हुए हैं। इसी का उदाहरण हैं 24 साल की अमरीकी छात्रा रशेल कोरी। उन्होंने इजरायल की नीतियों के विरोध में गाजा पहुंचकर 16 मार्च 2003 को इजरायली सेना के समक्ष मानव शृंखला बनाई। वे खुद सेना के बुलडोजर के आगे खड़ी हो गईं। जार्जिया की तलीबसी स्टेट यूनिवर्सिटी के छात्रों ने अहिंसक 'कामरा' आंदोलन चलाकर राष्ट्रपति एडवर्ड शेवरनात्जे को हटा दिया। यह आंदोलन गुलाबी क्रांति के नाम से मशहूर हुआ। सर्बिया के राष्ट्रपति मिलोसेविक को हटाने के लिए यूक्रेन के युवाओं ने अहिंसक 'पोरा' आंदोलन चलाया और अपने मकसद में सफल रहा। मिस्त्र के कई राजनीतिक दल 'काफिया' आंदोलन चला रहे हैं। यह पूरी तरह एक अहिंसक आंदोलन है। यह आंदोलन 25 साल से ज्यादा राष्ट्रपति पद पर आसीन मुहम्मद होस्नी मुबारक को हटाने के लिए चल रहा है।
गांधी को समझो, बनो मैनेजमेंट के गुरु
आज मैनेजमेंट के क्षेत्र के महारथी मान रहे हैं कि प्रबंधन के क्षेत्र में आने वाले युवाओं के लिए गांधी, उनके सिद्धातों और कार्यशैली को जानना जरूरी है। गांधीजी ने अंग्रेजों की गुलामी के दिनों में अपनी और देश की समस्याओं के लिए जिस तरह से प्रबंधन की तकनीक का सहारा लिया, वह कमाल की है। मैनेजमेंट गुरु सी के प्रहलाद कहते हैं कि गांधी ने देश को आजाद कराने के लिए चलाए गए आंदोलन के समय उपजी समस्याओं से लड़ने के लिए नए-नए तरीकों का इस्तेमाल किया। चाहे वह विदेशी कपड़ों की होली जलाना हो, सविनय अवज्ञा आंदोलन हो या फिर सन् 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन। उनका हर काम नए तरीकों से लैस होता था। इनकी मदद से उन्होंने भारत को आजादी दिलाने में कामयाबी हासिल की। आज भारत को दुनिया में सुपरपावर बनाने के लिए भी उन्हीं की तरह नए प्रयोग करने पड़ेंगे, क्योंकि वे तरीके आज भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने परंपराओं को तोड़ा। उन्हें पता था कि अंग्रेजों के खिलाफ बल प्रयोग की लड़ाई की बजाय आम लोगों के प्रतिकार की शक्ति को इस्तेमाल करना होगा। उन्होंने कभी संसाधनों के अभाव की शिकायत नहीं की। आज के युवाओं को भी अपने सीमित संसाधनों में ही सफलता को हासिल करना होगा। मैनेजमेंट विशेषज्ञ व्यापार में गांधी के नैतिकता, ईमानदारी और सत्यता के गुणों को अपनाने की सलाह देते हैं। अर्थशास्त्री अरिंदम चौधरी अपनी पुस्तक 'काउंट योअर चिकन्स बिफोर हैच' में विस्तार से बताते हैं कि गांधीजी के नेतृत्व में कुछ खास बात थी। वे इन तरीकों को कॉर्पोरव्ट क्षेत्र में लागू करने के तरीके की भी बात करते हैं। चौधरी कहते हैं कि गांधीजी ने भारत की संस्कृति के अनुरूप ही आंदोलन चलाया। हमें भी प्रॉडक्ट को समय, काल और संस्कृति के अनुरूप ढालकर ही पेश करना होगा। गांधीजी अपने अनुयायियों की बात बहुत ध्यान से सुनते थे। इसलिए हमें भी अपने उपभोक्ता की समस्याओं को करीब से जानना चाहिए। 'स्मार्ट मैनेजर ' की मैनेजिंग एडिटर डॉ. गीता पीरामल कहती हैं, 'गांधीजी की पीआरशिप गजब की थी। कल्पना कीजिए अगर गांधीजी दांडी यात्रा पर अकेले जाते, तो उसका कोई खास असर नहीं होता। उन्होंने दांडी यात्रा के लिए लोगों को अपने साथ जोड़ा।' आज के युवाओं को गांधीजी की जनसंपर्क की इस विधा को अपने जीवन में उतारना चाहिए। सत्याग्रह भारत का सबसे पहला लोकप्रिय ब्रांड था। गांधीजी ने 'यंग इंडिया' और 'हरिजन' में विज्ञापन दिया तथा लोगों से प्रस्तावित आंदोलन का नाम पूछा। उसमें लिखा था- नाम स्वीकार हुआ, तो 'यंग इंडिया' का एक साल का सब्स्क्रिप्शन मुफ्त मिलेगा। एक गुजराती सज्जन ने आंदोलन का 'साद आग्रह' मतलब 'सच्चाई का आग्रह'। छात्रों ने इससे सीखा कि किस तरह नए उत्पाद की ब्रांडिंग की जाए और ब्रांडिंग के लिए जनता का फीडबैक कितना जरूरी है। बोस्टन कनसल्टिंग ग्रुप के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अरू ण मारिया कहते हैं कि व्यापार में हर किसी का सशक्तिकरण महत्त्वपूर्ण है। उत्पाद से लेकर उपभोक्ता तक। गांधीजी ने देश के लिए सेवा के लिए भारत के लोगों को एक नया मंच दिया। हर व्यक्ति के लिए स्वतंत्रता संग्राम में एक भूमिका तय की।
छाया गांधीगिरी का जादू
आज गांधीगिरी मात्र एक शब्द नहीं आंदोलन बन गया है। मुन्नाभाई ने जब 'लगे रहो मुन्नाभाई' में पहली बार इसका इस्तेमाल किया, तो किसी ने सोचा नहीं होगा कि इस शब्द को इतनी शोहरत मिलेगी। आज http://www.gindhigiri.org/ नाम की एक वेबसाइट चल रही है। जहां आप अपनी समस्या, विचार या नया प्रयोग लोगों के साथ बांट सकते हैं। ऑरकुट पर भी गांधीगिरी नाम से एक कम्यूनिटी बनी हुई है। यहां तक कि इंटरनेट पर सबसे मशहूर वेबसाइट वीकीपीडिया पर भी गांधीगिरी के विषय पर पृष्ठ प्रकाशित है।लखनऊ में लोगों ने शराब की दुकानें बंद करवाने के लिए सबको गुलाब भेंट किए। इंदौर में मकर संक्रांति के दिन ट्रेफिक पुलिसकर्मियों ने लोगों को यातायात के नियम सिखाने के लिए उन्हें तिल के लड्डू भेंट किए और 15 यातायात नियमों को न तोड़ने की गुजारिश की। मलेशिया में हिंदू अधिकारों के लिए लड़ रहे संगठन 'हिंदराफ' के तत्त्वावधान में 16 फरवरी, 2008 को कम से कम दस हजार मलेशियाई भारतीय वहां की संसद के बाहर लोगों को लाल व पीले गुलाब भेंट कर अपने शांतिपूर्ण संघर्ष को प्रदर्शित किया। जब आपातकाल के दौर में पाकिस्तान में न्यूज चैनलों पर रोक लगी, तो जियो टीवी के हामिद मीन ने कार्यालय के बाहर ही कार्यक्रम पेश करने लगे। आपातकाल को वापस लेने के लिए भी गांधीगिरी का सहारा लिया गया और सड़कों पर फूल लेकर इसका विरोध करने लगे।अमरीका में भी ग्रीन कार्ड आवेदकों ने अमरीकी इमीग्रेशन एजेंसी को हजारों फूल भेजे ताकि एजेंसी उन नीति पर दुबारा गौर करे, जिससे उनके स्थायी निवास में परेशानी आ सकती है। गांधीजी को विदेशी खेल पसंद नहीं थे। वे कबड्डी जैसे खेलों को बढ़ावा देने के पक्ष में थे। पर आज भारतीय टैस्ट क्रिकेट टीम के कप्तान अनिल कुंबले खुद गांधीगिरी दिखा रहे हैं और ब्रैड हॉग की खुद के लिए और महेन्द्र सिंह धोनी के लिए कहे अपशब्द की आईसीसी को की गई शिकायत वापस ले ली। चाहे पाकिस्तान हो या हिंदुस्तान हर जगह लोग अपनी समस्याओं से निपटने के लिए गांधीगिरी का सहारा ले रहे हैं। टैफिक पुलिस वाले लोगों को गुलाब का फूल देकर नियम पालन का सबक दे रहे हैं। जब पाकिस्तान में जियो टीवी के कार्यालय को सील कर दिया गया, तो टीवी सैट्स को लेकर बाहर बैठ गए।
तकनीक को भाते साबरमती के संत
गांधीजी कुटीर उद्योग को बढ़ावा देना चाहते थे। वे तकनीक पर आश्रित नहीं होने की सलाह दिया करते थे। पर आज तकनीक के पर्याय इंटरनेट पर गांधी की सर्च सबसे द्गयादा होती है। गूगल पर अगर गांधी के लिए सर्च करते हैं ,तो 1.94 करोड़ रिजल्ट मिलते हैं। लोग उनके बारे में ज्यादा से ज्यादा जान रहे हैं। गांधी के नाम, विचार और जीवन पर कई वेबसाइट्स हैं। कुछ लोकप्रिय वेबसाइट हैं- http://www.mkgandhi.org/,
फिल्मों में भी बहार
फिल्मों में गांधी के स्वरूप को देखकर सारी दुनिया जान पाई कि एक व्यक्ति ने किस तरह ब्रिटिश शासन के कभी न डूबने वाले सूरज को अस्त कर दिया। रामाल्लाह में फिलीस्तीन प्रधानमंत्री मोहम्मद अब्बास ने रिचर्ड एटेनबरो की फिल्म गांधी में गांधी का किरदार निभाने वाले बेन किंग्स्ले के साथ 'गांधी' फिल्म देखी। उन्होंने कहा कि इजरायल और फिलिस्तान के बीच शांति से हल खोजा जाए। सन् 1962 में बनी फिल्म नाइन आवर्स टू रामा (जॉन राबसन), गांधी(रिचर्ड एटेनबरो, 1982), मेकिंग ऑफ द महात्मा(श्याम बेनेगल, अंग्रेजी, 1996), हे राम(कमल हासन, 2000), मैंने गांधी को नहीं मारा(जानू बरुआ, 2005), लगे रहो मुन्नाभाई(राजकुमार हिरानी, 2006) गांधी माइ फादर(फिरोज खान, 2007) जैसी हिंदी फिल्में दुनिया के सामने गांधी के सच्चे स्वरूप को सामने लाने का दावा करती हैं। साथ ही 'लुकिंग एट गांधी' के शीर्षक से सात लघु फिल्में भी बनी हैं। ये फिल्में गांधी के जीवन में आम आदमी को झांकने का मौका देती हैं। बॉम्बे सर्वोदय मंडल ने साल 2007 में छह बड़ी जेलों में गांधी पर आधारित फिल्म 'लगे रहो मुन्नाभाई' का भी प्रदर्शन किया गया। इससे कैदियों के जीवन में सुधार की उम्मीद की जा रही है।
विचारों में समाए
जहां रोम्या रोलां जैसे लेखक और आइंस्टीन जैसे वैज्ञानिक गांधी पर लिख चुके हैं। अमरीका के इलिनाय के गवर्नर जार्ज रेयान गांधीजी को याद करते हैं। उनके संदेश को दुनिया में फैलाना चाहते हैं। उन्होंने राज्य की जेलों में बंद 167 लोगों की फांसी की सजा माफ कर दी। वहीं विश्व के प्रमुख नोबेल शांति पुरस्कार विजेता भी उन्हें अपना प्रेरणा स्त्रोत मानते रहे हैं। अमरीका के मार्टिन लूथर किंग गांधी के दर्शन से बहुत प्रभावित थे। तिब्बत के दलाई लामा गांधीजी को अपना सच्चा शिक्षक मानते हैं। म्यांमार की आंग सान सू की ने म्यांमार में सैनिक शासन का अहिंसक विरोध करके खुद को अप्रत्यक्ष रूप से गांधीजी की बेटी साबित कर दिया है। दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद नीति के खिलाफ संघर्ष करने वाले नेल्सन मंडेला भी गांधीजी के आचार-विचार से प्रभावित हैं। मार्टिन लूथर किंग जूनियर से लेकर नेल्सन मंडेला को नोबेल शांति पुरस्कार मिल चुका है। अब ये दुनियाभर में गांधीजी के विचारों को मूर्तरूप देने का काम कर रहे हैं।
साहित्य भी है साधन
गांधी की लिखित पुस्तकों की संख्या कुल मिलाकर चालीस के आसपास है। उनकी प्रमुख किताबों में 'सत्य के प्रयोग', 'अनासक्ति योग', 'मेरे सपनों का भारत', 'पंच रत्न', 'नई तालीम की ओर' और 'आरोग्य की कुंजी' हैं। ये सारी किताबें गुजराती भाषा से हिंदी में अनुवादित हो चुकी हैं। आज भारत का युवा गांधी के विचारों को जानना चाह रहा है। दुनियाभर में उनकी पुस्तकें और विचार धूम मचा रहे हैं। शिकागो विश्वविद्यालय में स्थित पुस्तकालय में छात्र अखबार 'यंग इंडिया' की माइक्रो फिल्म पढ़ रहे हैं। 7 जनवरी 2008 को नासिक की केंद्रीय जेल से एक कैदी लक्ष्मण तुकाराम गोले ने महात्मा गांधी की आत्मकथा 'सत्य के प्रयोग' पढ़कर अपने अपराधों को कबूल कर लिया। बॉम्बे सर्वोदय मंडल ने उसे 'सत्य के प्रयोग' पढ़ने के लिए दी थी। बॉम्बे सर्वोदय मंडल की न्यासी टी आर के सौम्या कहती हैं, 'देशभर की जेलों में अब कैदी गांधीजी की जीवनी की मांग कर रहे हैं।' बॉम्बे सर्वोदय मंडल महाराष्ट्र राज्य में पिछले पांच सालों से जेल में रहने वाले कैदियों के लिए 'गांधी शांति परीक्षा' का आयोजन कर रही है, ताकि कैदियों में भी गांधी और उनके काम के बारे में जागरुकता आ सके।
काम गांधी ने किया जो, काम आंधी न कर सकती - सियाराम शरण गुप्त
'सवेरे के प्रहर में सूर्य नारायण अपना उद्धार करता है, योगारू ढ़ होकर आता है और संध्या के समय शांत होता है। सूर्य सचमुच शांत होता है?मैं मरूंगा, तब भी शांत थोड़े ही होने वाला हूं।' - 'गांधीः जैसा देखा-समझा' से
-आशीष जैन
adarniya mahatma gandhiji ke charno me koti koti namaskar jai bapu jai congress gopal jethwani akola
ReplyDeleteexillent
ReplyDeleteimandari ki koi kimat nahi hoti.
ReplyDeleteis desh ka bhai log kuch nahi ho sakta aaj afsos hota hai ki ye desh kyu azaad hua. agar gulam rahta to jayaada acha tha.
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